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________________ - जीवाभिगमसूत्रे २० पझादि पदानि पूर्व व्याख्यातानि, सर्वेचैते छत्रातिच्छत्रादि सहस्रपत्रहस्तकान्ताः, 'सव्वरयणामया सर्वरत्नमयाः निरवशेषतया रत्नमयाः, तथा-'अच्छा जाव पडिरूवा' अच्छा यावत्प्रतिरूपाः अच्छादिविशेषणानि व्याख्यातपूर्वाणि, 'तासिणं खुडियाणं वावीणं जाव विलपंतियाणं' तासां खलु क्षुल्लिकानां वापीनां यावद् विलपंकीनां पुष्करिणीतो विलपंक्ति पर्यन्तानामपान्तरालेषु 'तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं तत्र तत्र देशे तस्यैव देशस्य तत्र तत्रैकदेशे, प्रदेशकभागे इत्यर्थः 'वहवेउप्पायपव्यया' वहवोऽनेके उत्पातपर्वताः, यत्रागत्य बहवो वानव्यन्तरदेवा देव्यश्च विचित्रक्रीडानिमित्तं वैक्रियशरीरमाश्रयन्ति, 'णियइ पव्वया' नियतिपर्वताः, नियत्या-नयत्येन पर्वताः नियतिपर्वताः सदा भोग्यत्वेनावस्थिताः 'जगई पचया' अनेक पुण्डरीक हस्तक हैं । अनेक शतपत्र हस्तक हैं और अनेक सहस्रपत्र हस्तक हैं । इस प्रकार के पाठ का संग्रह हुआ है ये सव 'सव्वरयणामया' सर्वात्मना रत्नमय है अच्छ आकाश और स्फटिकमणि के जैसे अति शुभ्र है यावत् प्रतिरूप है श्लक्ष्णादि पदों का अर्थ पूर्ववत् समझलेनाचाहिये 'तासिणं खुड्डियाणं वावीणं जाव विलपंतियाण' उन छोटी छोटी वापिकाओं के विल पंक्तियों के उत्तर २ प्रदेशों में, प्रदेशों के भी एक एक देश में भी बहवे उप्पायपव्वया' अनेक उत्पाद पर्वत है इन पर अनेक व्यन्तर देव और देवियां आकर के विचित्र प्रकार के क्रीडा करने की निमित्त उत्तर वैक्रिय शरीर की रचना करते हैं इसलिये इनका नाम उत्पाद पर्वत है अनेक 'णियइ पव्यया' नियति पर्वत हैं ये वानव्यन्तरों के नियतरूप से सदा भोग्य मे आने वाले होने से इनको नियति पर्वत कहते हैं 'जगईपव्वया अनेक હસ્તક છે. અનેક શતપત્ર હસ્તક છે. અને અનેક સહસ્ત્રપત્ર હસ્તક છે. આ प्रा२न पान सय थयेस छ. २ मा समू। 'सब्बरयणामया' सर्वात्मना રત્નમય છે. અચ્છ આકાશ અને સ્ફટિક મણિ પ્રમાણે અત્યંત શ્વેત છે. યાવ(प्रति३५ छे. स विगेरे पहोना अथ पूर्व प्रमाणे सम सेवा. 'तासिणं खुड्डियाणं वावीणं जाब विलपंतियाण' से नानी नानी पाठियोनी जिस ५तियाना उत्तर उत्तर प्रदेशमा प्रदेशान। पY मे से देशमा ५४ 'बहवे उप्पायपव्यया' मने पात ५ तो छ. तेना ५२ मिने४ व्यन्त२ हे। भने દેવિ આવીને વિચિત્ર પ્રકારની ક્રીડા કરવા માટે ઉત્તર વૈક્રિય શરીરની રચના ४२ छे. तेथी तेनु ना -पात ५'त छ. "णियइपव्यया' मने नियति पत છે. આ પર્વતે વાતવ્યન્તના ભેગ્યતરિકે ઉપયોગમાં આવનાર હોવાથી તેને नियति त ४९ छे. 'जगती पव्वया' भने ती त छ. 'दारुपव्यया'
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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