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________________ जीवाभिगमसूत्रे तेपां खलु तोरणानामुपरि-ऊर्ध्वमागे 'वहवे किण्हचामरज्झया' वहवः-अनेके : कृष्णाचामरैयुक्ता ध्वजा स्तोरणानामुपरिभागे विद्यन्ते तथा-'नीलचामरज्झया' वहवो नीलचामरैर्युक्त ध्वजा विद्यन्ते तथा-'लोहियचामरज्झया' वहवो लोहितचामरध्वजा विद्यन्ते, तथा 'हारिद्दचामरझया' हारिद्रचामर ध्वजाः, पीतवर्णध्वजा इत्यर्थः 'सुकिल्लचामरज्झया' शुक्लवर्णोपेतचामरयुक्ताध्वजाः सन्ति, ते च 'अच्छा' अच्छाः स्फटिकवदति शुभ्राः 'सण्हा' उलक्ष्णपुद्गलस्कन्धनिर्मिताः 'रूप्पपट्टा' रूप्यपट्टाः, रूप्यं रजतं तन्मयाः वज्रदण्डस्योपरिपट्टा येषां ते रूप्यपट्टा ध्वजाः 'वइरदंडा' वज्रदण्डाः, वनो-वज्ररत्नमयो दण्डो रूप्यपट्टमध्यवर्ती येषां ते वज्रदण्डाः, 'जलयामलगंधिया' जलजामलगन्धिकाः, जलाज्जातं-समुद्भूतं जलजं-कमलं तेपामिव जलजकुसुमानां पद्मादीनामिव अमलोनिर्मलो यो गन्धः-सुरभिगन्धः स विद्यते येपां ते तथा, अतएव "सुरम्मा' जैले स्वच्छ है श्लक्ष्ण यावत् प्रतिरूप है । श्लक्ष्ण आदि प्रतिरूपपर्यन्त के इन पदों की व्याख्या पीछे की जा चुकी है 'तेसिणं तोरणाणं उप्पि वहवे किण्हचामरज्झया' उन तोरणों के उर्वभाग में अनेक कृष्णकान्तिवाले चामरों से युक्त ध्वजाएं है 'नील चामरज्झया' नीलवर्णवाले चामरों से युक्त ध्वजाएं है 'लोहिय चामरज्झया' लोहित लालवर्णवाले चामरों से युक्त ध्वजाएं है 'हारिद्दचामरज्झया' हारिद्रवर्ण के पीलेवर्ण के चामरों से युक्त ध्वजाएं है "सुक्किल्लचामरज्झया' शुक्लवर्ण के चामरों से युक्त ध्वजाएं है । 'अच्छा सण्हा रूप्पपट्टावडर दंडा जलयामलगंधिया सुरुवा पासाड्या ४' ये सब ध्वजाएं अच्छ स्वच्छ है- आकाश और स्फटिकमणि के समान अति शुभ्र है श्लक्ष्ण चिकनी है वज्रदण्ड के उपर में इनके पद चांदी के बने हुए है 'वइर दंडा' इनके दण्डवज्ररत्न के बने हुए हैं इनका गंध जलज-कमल के व्याय पाहतां वामां मापी गये छ. 'तेसि णं तोरणाणं उप्पिं बहवे किण्हચારનવા એ તારણોના ઉપરના ભાગમાં અનેક કૃષ્ણ કાંતિવાળા ચામરેથી युत ताछे 'लोहियचागरज्मया' सात पायाभ। युत धन्तमा छे. 'हारिह चागरज्जया' पीवाणा यामशवाजी पन्तव्य छे. 'सुकिल्लचामरज्झया' सद व वा याभरायी युटत धन्तो छ. 'अच्छा सण्हा रूपपट्टा वइरदंडा जलयामलाविया मुख्या पासाइया४' मा मधी या अच्छ स्वच्छ छे. माश અને સ્ફટિક મણિ સરખી અત્ય ત શ્વેત છે. ગ્લણ ચીકણી છે. વજદંડની ઉપર सेना ५६ यहिना मनेसा छे. 'वइरडा' सेना ९ % २त्नन। अनेस छे. એની ગંધ જલજ-કમલના ગંધ જેવી છે. એથી જ એ સુરમ્ય છે મનહર છે. 'सुरुवा' गेनु ३५ श्रेष्ठ छे. मने से प्रासाहीय विगैरे विशेषणथी युत छे.
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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