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________________ प्रमेयधोतिका टोका प्र.३ उ.३ सू.६६ विजयदेवाभिपेकवर्णनम् मभिनय प्रकारमुपदर्शयन्ति, 'अप्पेनइया देवा-विलंवियं णविहिं उबदसेंति' अप्येकका देवाः विकन्धितं नाट्यविधिनुपदर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा-दुयविलंवियं नट्टविहिं उपदंसें ति'-अपि केचन देवा द्रुतविलम्वितं नाम नाटयविधि सुपदर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा-अप्येकका देवा:-'अंचियं नट्टविहिं उवदंसे ति'-अश्चित नामक नाटयविधि दर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा रिभितं नट्टविहि उवदंसेंति'-अपिकेचनैके, देवा रिमितं नाम नाटयविधानं दर्शयन्ति । 'अप्पेगइया देवा अंचिय-रिभितं नट्टविहिं उवदंसेंति'-अध्येकका देवा अश्चितरिमितनामकं नाट्यविधिमुपदर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा'-अपिकेचन देवा:-'आरमडं जट्टविहिं उपदंसेंति'-आरभट नामक. नाट्यविधिमुपदर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा भसोलं नट्टविहिं उवदंसेंति'-अप्पे देवों ने इन ३२ प्रकार की नाट्यविधियों में ले कितनेक नाट्यविधियों का इस समय प्रदर्शन किया इस बात को सूत्रकार प्रकट कर रहे हैं। _ 'अप्पेगइयादेवा दुयं णविहिं उवदंति' उसी प्रदर्शन में कितनेक देवोंने यह २२वीं दुत नाट्यविधिका प्रदर्शन किया 'अप्पेगइया देवा विलंबियं नदृविहिं उचदंसें ति' कितनेक देवों ने उस समय, विलंबित नाटयविधि का उपदर्शन किया। 'अप्पेगइया देवा दुय विलंपियं नहविहिं उवदसें ति कितनेक देवोंने उस समय द्रुतविलम्बित नाट्यविधिका प्रदर्शन किया 'अप्पेगइया देवा अंचियं नट्टविहिं उवदंसें ति' कितनेक देवोंने उस समय अंचित नाट्यविधिका प्रदर्शन किया। 'अप्पेगड्या देवारिभितं नविहिं उपदंसें ति' कितनेक देवों ने उस समय रिभित नाट्यविधिका उपदर्शन किया 'अप्पेगईया' देवा अंचियरिभियं नविहिं उबदलें ति' कितनेक देवोंने उस समय ચરમ કેવળજ્ઞાનની પ્રાપ્તિના અભિનય રૂપે તેઓના ચરમ તીર્થના પ્રવચનના અભિનયરૂપે અને છેલ્લા તેઓની નિર્વાણ પ્રાપ્તિના અભિનયરૂપે બતાવેલ હતી.. દેવેએ આ બત્રીસ પ્રકારની નાટ્યવિધિમાંથી કેટલિક નાટ્યવિધિ આ समये मतावेस ये पात सूत्रधार प्रगट ४२ छे. 'अप्पेगइया देवा दुयं नट्टविहि, डवदसें ति' २२ प्रहशनमा टसा हेवाये २२ मावीसभी द्रुत नामनी नाटयविधि मतापी 'अप्पेगइया देवा विलंबियं नड्टविहिं उवदंसें ति’ टमा हेवाय ते समये विसमित नव्यविधि माडी 'अप्पेगइया दुयारलंवियं नट्टविहिं उत्रदंसेति' मा हे। ते मते दुतविलम्ति नाट्यविधि सतावी. 'अप्पेगइया देवा अंचियं नट्टविहिं उबदसें ति' मा वामे ते मते गति नामनी नाट्यविधि मतावी. 'अप्पे गइया देवा रिमित नट्टविहि उवईसे ति टा हेवा में समय ललित नामनी नाध्यविधि मतापी. 'अप्पे गझ्या देवा अंचियरिभियं नट्टविहिं उवदंसे ति' मा वायो को मते मयित
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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