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________________ ૨ जीवाभिगमसू गइयाओ घओदाओ' अप्येककाः काश्चन वाप्यादयः घृतमिवोदकं जलं यासां ता घृतोदकाः, तथा - 'अप्पेगइया खोदोदाओ' अप्येककाः काश्चन् वाप्यादयः क्षोद इव - इक्षुरस इवोदकं - जलं यासां ताः क्षोदोदकाः, तथा'अप्पेगइयाओ अमयरस समरसोदाओ' अप्येककाः काश्चन वाप्यादयः अमृतरससमरसमुदकं यासां ता अमृतरससमरसोदकाः, तथा 'अप्पेगइयाओ उदगर सेणं पन्नत्ताओ' अप्येककाः काञ्चन वाप्यादयः प्रकृत्या - स्वभावेन उदकरसेनयुक्ताः प्रज्ञप्ताः, 'पासाईयाओ४' प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपाः प्रतिरूपाः 'तासिणं खुडियाणं वावीणं जाव बिलपतियाणं' तासां खलु क्षुद्रिकानां वापीनां यावद् विलपतीनाम् पुष्करिण्यादीनां विलपतयन्तानाम् ' तत्थ तत्थ देसे तहिं तर्हि ' तत्र तत्र देशे तत्र तत्रैकदेशे ' वहवे तिसोवाणपडिरूवगा पत्ता ' वहूनि त्रिसो - पानप्रतिरूपकाणि प्रज्ञप्तानि, प्रति - विशिष्टं रूपं येषां तानि प्रतिरूपकाणि हैं की जिनका जल घृत के जैसे स्वादवाला है। 'अप्पेगइया खोदोदाओ' कितनेक जलाशय ऐसे हैं कि जिनका जल इक्षुरस के जैसा स्वाद वाला है 'अप्पेगइयाओ अमयरससमरसोदाओ' कितनेक जलाशय ऐसे है कि जिनका जल अमृत रसके जैसा स्वादवाला है' अप्पेगइयाओ पगतीए उद्गर सेणं पन्नन्ताओ' कितनेक जलाशय स्वभावतः ही अपने उदकरस से युक्त है, 'पासाइयाओ' ४ ये सब जलाशय प्रासादिक है दर्शनीय है अभिरूप है और प्रतिरूप है इन प्रासादिक आदि विशेषणों का अर्थ पहिले कहा जा चूका है, 'तासिणं खुड्डियाणं वावीणं जाव विलपतियाणं तत्थ २ देसे तहिं २ वहवे तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता' उन छोटी छोटी वापिकाओं के रूपवाले यावत् पुष्करिणियों से लेकर विपंक्तियों कूपों के उन २ प्रदेशों में उन उन स्थानों में अनेक त्रिसो मेवा छे! नेनुं पाणी धीना देवु स्वाहवाणु छे. 'अपेगइयाओ खोदोदाओ' કેટલાક જળાશયેા એવા છે કે જેનું પાણી શેરડીના રસ જેવા સ્વાદવાળું છે. 'अप्पेगइयाओ अमयरससमरसोदाओ' डेंटला नाशयेो मेवा छे नेनु पाएगी अमृतना रस वा स्वाहवाणु छे. 'अपेगइयाओ पगतीए उद्गरसेणं पन्नत्ताओ' डेटलाई नाशयी स्वभावथीन पोताना उरसथी युडत छे. 'पासाइयाओ४' આ બધા જલાશયેા પ્રાસાદીય દર્શનીય છે. અભિરૂપ છે, અને પ્રતિરૂપ छे. या प्रासाहि विगेरे पहोनो अर्थ पहेला हेवामां भावी गयेस छे. 'तासि - णं खुड़ियाणं वापीणं जाव विलपंतियाणं तत्थ तथ देसे तहिं तर्हि वहवे तिसोवाणपडिवगा पण्णत्ता' से नानी नानी वावना उपवाजा यावत् पुण्डरिशियेो થી લઈને મિલ પ"કિતા અને કૂવાઓના એ એ પ્રદેશમાં એ એ સ્થાનામાં
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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