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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५४ वनषण्डगत वाप्यादीनां वर्णनम् ७ खुडूडियाओ वावीओ बद्दयः क्षुद्राः क्षुद्रिका:-लघवो लघव इत्यर्थः वाप्यः चतुस्राकाराः, 'पुक्खरिणीओ' पुष्करिण्यः-वृत्ताकाराः यद्वा पुष्कराणि-कमलानि विद्यन्ते यासु ताः पुष्करिण्यः 'दीहियाओ' दीधिका:-निर्झरसहिता वाप्यः सारिण्यः 'गुंजालियाओ' गुञ्जालिकाः-वक्राः सारिण्य एव गुञ्जालिकाः 'सरसीओ' सरांसि बहूनि केवलानि पुष्पावकीर्णानि, 'सरपंतियाओं' सरपंक्तयः-बहूनि सरांसि एकपंक्त्या व्यवस्थितानि सरपंक्तिस्ता एव वढ्यः सरपंक्तयः 'सरसरपंतीओ' सरःसरः पङ्क्तयः येषु सरस्सु पंक्तया व्यवस्थितेषु कूपोदकं प्रणालिकया संचरति सा सरः सर: पंक्तिः ता एव बहयः सरः सरः पङ्क्तयः, 'बिलपंतीओ' विलपतयः, विलानीव बिलानि-कूपा स्तेषां पतयो विलतयः, एताश्च सर्वाः कथं भूतास्तत्राह-'अच्छाओ' इत्यादि, 'अच्छाओ' अच्छा:'बहवे' अनेक 'खुड्डा खुड्डियाओ' छोटी २ 'वावीओ पुक्खरिणीओ गुंजालियाओ दीहियाओ सरसीओ सरपंतियाओ, सरसरपंतीओ' चौखूटीवापिकाएं हैं, जगह जगह अनेक गोल आकार वाली या पुष्करोंवाली. पुष्करिणियां हैं। जगह जगह झरनों वाली वावडियां हैं, जगह जगह टेडे मेडे आकार वाली वावडियां हैं जगह जगह पुष्पावकीर्ण अनेक तालाव है, जगह जगह अनेक सर: पंक्तियां हैं एक पंक्तिसे रहे हुए अनेक तलावों को सरः पंक्ति कहा गया है-ऐसी अनेक सरः पंक्तियां वहां पर है जगह २ अनेक सरः सर पंक्तियां हैंपंक्तियां से व्यवस्थित जिन तालावों में कुए का पानी नालियों द्वारा लाया जाता है उसका नाम सर: सरः पंक्ति है, ऐसी सरः सरः पंक्तियां वहां पर अनेक हैं 'विलपंतियाओ' जगह२ कुओं की पंक्तियां हैं ये सब जलाशय 'अच्छाओ सहाओ' आकाश और स्फाटिककी तरह 'खुड्डाखुड्डियाओ' नानी पावड़ियो 'पुक्खरिणीओ गुंजालियाओ दीहियाओ सरसीओ सरपंतियाओ, सरसरपंतियाओ' या भूणिया पाव। छ, स्थणे स्थणे मने गण આકારવાળી અથવા પુષ્કરવાળી પુષ્કરિણિયો છે. સ્થળે સ્થળે ઝરણાઓવાળી વાવે છે. સ્થળે સ્થળે વાંકાચુંકા આકારવાળી વાવડિયે છે. સ્થળે સ્થળે પુષ્પોથી ઢંકાયેલા અનેક તળાવે છે. સ્થળે સ્થળે અનેક સર પંક્તિ છે એક પંક્તિ માં રહેલા અનેક તળાવોની પંક્તિને સરઃ પંક્તિ કહે છે. એવી અનેક સરઃ પંક્તિ ત્યાં એ વનખંડમાં છે. સ્થળે સ્થળે અનેક સરસર પંક્તિ છે. જે પંકિત બદ્ધ તળાવમાં કુવાનું પાણી નળિયે દ્વારા લાવવામાં આવે તેનું નામ १२:१२:५४ छ. मेवी मने स२:२२:५त्तियो से वन म छ. 'विलपंतियाओ' स्थणे स्थणे पायानी तियो छ. म मा माशयो 'अच्छाओ
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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