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जीवामिगमसूत्र प्रतिष्ठितः 'विसि?'-विशिष्टः, 'अणेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्स परिमंडियाभिरामे'-अनेकवरपश्चवर्ण कुडभीसहस्रः लघुपताकासहस्रः परिमण्डिताभिरामः वातोद्धृत विजयवैजयन्तीपताकः छत्रातिच्छत्रकलितः तुगो गगनतलमभिलंध्यमानशिखरः प्रासादिकः, एतदाशयेनैवाह-'एवं जहा'-इत्यादि । 'एवं जहा माहिंदज्झयल्स वण्णओ जाव पासादीए'-एवं यथा माहेन्द्रध्वजस्य वर्णको यावत् प्रासादीयः, माहेन्द्रध्वजवदेव माणवकनामक चैत्यस्तम्भस्यापि वर्णनमशेष कर्त्तव्यं यावत्प्रतिरूप इति । 'तरस णं माणवयस्स चेइयखंभस्स'मट्ट सुपइट्टिया' यह सुश्लिष्ठ है । खरशाण से घिसे हुए पापाण की तरह सुकुमाणशाण से घिसे हुए पापाण की तरह यह चिकना है और सुप्रतिष्ठित है विशिष्ट है 'अणेगवर पंचवण्णकुडभिसहस्सपरिमंडियाभिरामे' तथा अनेक सुन्दर पांचवर्णोंवाली छोटी छोटी हजारों ध्वजाओं से यह परिमंडित है इससे वह बडा ही सुन्दर दिखता है हवा से कंपित विजयवैजयन्ती पताकाएं सदा हवा से इस पर फहराती रहती है। इस पर छत्रातिच्छत्र भी है यह तुङ्ग-ऊंचा हैं अतः ऊंचाई से यह ऐसा ज्ञात होता है कि मानों यह आकाश-तल को ही उल्लङ्घन कर रहा है यह चित्त को प्रसन्न देखते ही कर देता है इसी अशय को लेकर 'एवं जहा माहिंदज्झयस्स वण्णओ जाव पासादीप' ऐसा सूत्रपाठ-इसके वर्णन करने के निमित्त कहा गया है तात्पर्य इसका यही है कि इस माणवक चैत्य स्तम्म का वर्णन यावत् 'पासादीए' इस पाठ तक माहेन्द्रध्वजा के जैसा ही हैं। 'तस्सणं माणवयस्ससु४२ छे. 'सुसिलिट्ट परिधट्ट मट्ट सुपइट्रिया' ग घ सुश्मिट छ. १२साथी धमा पाषान व ४ि॥ छ. मने सुप्रतिष्ठित छ. विशिष्ट छ. 'अणेगवर पंचवण्ण कुडभिसहस्सपरिमंडियाभिरामे' तथा मने प्रारना मुं२ पायवाणी નાની નાની હજારે ધજાઓથી એ પરિમંડિત-સુશોભિત છે. તેનાથી તે ઘણુંજ સુંદર દેખાય છે. હવાથી કંપાયમાન વિજ્ય વૈજ્યન્તી પતાકાઓ હમેશાં તેના પર ફરકતી રહે છે. તેના પર છત્રા હિચ્છત્ર પણ છે. તે ઘણુંજ તુંગ છે, અર્થાત્ ઘણું જ ઉંચું છે. તેથી ઉંચાઈ થી તે એવું જણાય છે કે જાણે તે આકાશતલનેજ ઓળંગી રહ્યા છે. તેને જોતાંજ ચિત્તમાં પ્રસન્નતાજ ઉપજે છે. એજ माराय ने साइन एवं जहा माहिंदमयस्स वण्णओ जाव पासादीए' मा सूत्रपाठ કહેલ છે. આકથનનું તાત્પર્ય એવું છે કે–આ માણુવક સ્તંભનું વર્ણન યાવત.
'पासादीए' मा पा3 सुधी भाडेन्द्रधान HS ४२ वन प्रमाणे छे. . 'तस्स णं माणवयरस चेइयखंभस्स' सभाप४ चैत्यस्ता बानी 'अरिं' ५२ 'छक्कोसे