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जीवामिगममः सहस्रकलिता, 'मिसमाणीमिमि ममाणी' दीप्यमाना देदीप्यमाना-प्रकाममानाऽतिशयेन प्रकागमाना, 'चपलायणलंगा-चक्षलोंकनलेगा: चमकतकलाकनेऽवलोकने दर्शनीयत्वाऽतिशयनः ग्लिप्यनीति चक्षुलौकिनन्ददया, 'गुहफासा' शुभस्पर्शाः, 'सस्सिरीयस्या' सश्रीकरुपा, स गोभाकानि म्पाणि विद्यन्ने यत्र सास श्रीकरूपा, 'कंचणमणिरयणभियागा' कांचनमणि ग्न्नन्तृपिकाकाः कानन· मणिरत्नानां स्तृपिका-शिग्गरं यस्याः मा काननमणिरत्नम्नपिकाका, 'गणाविह पंच वण्ण घंटा पडाग पडिमंडितग्गमिहरा' नानाविध पञ्चवर्ण घण्टा पताका परिमण्डिताग्रशिखरा, नानाविधाभिरनेकप्रकाराभिः पनाकाभिः पञ्चवणः संयुताभिर्घटाभिश्च परिमण्डितानि अग्रगिवराणि यस्याः सा तथेति । 'धवला' धवलाः - श्वेताः 'मरीइ कवचं विणिम्मुयंती' मरीचयः एव कवचं विमुत्रन्तीव भासते। 'लाउल्लोइय मटिया-लाउलोइयमहिना, लाउड्यं नाम यद भूमे गोमयादिना-उल्लेपनम् उल्लोदयं कुडन्यानां मालम्य च सेटिकादिभिः समष्टी करणमिति, ताभ्यामिव महिता-पूजिता इति 'लाउल्लोइय महिना युक्ता। तथा तेज के ही प्रभाव से चमक दमकवाली बनी हुई है। 'चल्लोयणलेसा' देखनेपर यहोमी लगती है कि मानो देखनेवालों के नेत्रों को यह पकड रही है 'मुहफासा' इसका स्पर्श सुग्वकारी है । 'मस्मिरीय स्वा' रूप इसका बडा मनोहर है 'कंचणमणिरयणभियागा' इसके शिखर सुवर्ण मणि एवं रत्नों के बने हुए है । 'णाणाविहपंचवण्णघंटा पडागपडिमंडितग्गसिहरा' अनेक प्रकार की पताकाओं से एवं पांचवर्णों से युक्त घंटाओं से इसके आगे के शिग्वर मुशोभित है । 'धवला' ये शिग्वर सफेद है । 'मरीइकवचं विणिम्मुयंती' अतः उनसे यह ऐसी ज्ञात होती है कि मानो यह किरणरूपी कवचों को ही छोड रही है अर्थात् किरणों के समूह को ही उगल रही है 'लाउल्लोइयमहिया गोमय से इसका नीचेका सव भाग लिपा हुआ है और भी इसकी अभागी मन छ. 'चक्खुल्लोयणलेसा' नवाथी सवी साग छ ।
नारागाना नेत्राने ५४ी २२स छे. 'सुहफासा' तनो पर्श अत्यंत सुमा२४ छ. 'सस्सिरीयरूवा' तेनु ३५ धा मनाउ२ छ. 'कंचणमणिरयण भियागा' तेनु शिम२ सुवर्ण, भणी अने रत्नाना मानेस छ. 'णाणाविह पंचवण्ण घंटापडागपडिमंडितगसिहरा' गाने प्रा२नी पतामाथी मने पांय पथी युत घटागोथी तेना माना शिमरी सुशलितले. 'धवला' से शिम सास छ 'मरीइकवचंविणिम्मुयंति' तथा यसकाराय छे. (४२५ ३थी ४५० એને જ છેડી રહેલ છે. અર્થાત કિરણોના સમૂહને જ ઓગાળી રહેલ હોય છે.