SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1531
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.१० सू.१५१ जीवानां अष्टविधत्वनिरूपणम् १५०७ न्येन अन्तर्मुहर्तम् उत्कर्पतस्तु-वनस्पतिकालः । 'एवं मणुसस्स वि-मणुस्सीए वि' एवं मनुष्यस्यापि मानुष्या अपि । 'देवस्स वि-देवीए वि' देवस्यापि देव्या अपि पूर्ववत् । 'सिद्धस्स णं भंते ! अंतरं०' सिद्धस्य खल्वन्तरं भदन्त !० गौतम ! 'साईयस्स अपज्जवसियस्स अंतरं णत्थि' साद्यपर्यवसितस्यान्तरं नास्ति । 'एएसि णं भंते ! नेरइयाणं-तिरिक्खजोणियाणं-तिरिक्खजोणिणीणं मसाणं मणूसीणं देवाणं देवीणं-सिद्धाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया' एतेपां खलु भदन्त ! नैरयिकाधष्टानां कतरेभ्यः कतरेऽल्पा वा-यावद्विशेपाधिकावेति प्रमाण अनन्त काल का है । 'एवं मणुस्लस्स वि मणुस्सीए वि' ऐसा ही अन्तर मनुष्य का और मनुष्य स्त्रियों का भी है। तथा-'देवस्ल वि देवीए वि' देव और देवियों का भी है 'सिद्धस्सणं भंते ! अंतर हे भदन्त ! सिद्ध जीवों का अन्तर काल की अपेक्षा कितना है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं' सिद्ध जीव सादि अपर्यवसित होते हैं अतः उनका अन्तर नहीं होता है । इनके अल्पबहुत्व का विचार'एतेसिणं भंते ! णेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिजीणं भस्लाणं मणुस्सीणं देवाणं देवीणं सिद्धाण य कयरे०' हे भदन्त ? इन रयिक जीवों के, तिर्यग्योलिक जोवों के, तिर्यग्योनिक स्त्रियों के, मनुष्यों के, मनुष्य स्त्रियों के, देवों के देवियों के और सिद्धों के बीच में कौन जीव किन जीवों की अपेक्षा अल्प हैं कौन किन जीवों की अपेक्षा बहुत हैं ? कौन किनके बराबर हैं ? और कौन प्रभा मान तनु छ. 'एवं मणुस्सस्स वि मणुस्सीए वि मे प्रमाणेनु मत२ मनुष्य ३१नु भने मनुष्य सायानु र समन्तथा 'देवस्स वि देवीए वि' हे मन हेवीयानु मत२ ५ मे प्रमाणे छे. 'सिद्धस्स णं भंते ! अतरं गवन् ! सिद्धानुमत२ अनी अपेक्षाथी यु ४७९ छ ? २मा प्रशन उत्तरमा प्रभुश्री छ8-3 गौतम ! 'सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं' सिद्ध व साम५°सित हाय छे. तेथी तभनु અંતર હોતું નથી. તેમના અલ્પ બહત્વનું કથન 'एएसिणं भंते ! णेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणीणं मणसाणं मणूसीण देवाणं देवीण सिद्धाणय कयरे०' सावन् ! मान४ि०वामा તિયંગ્યનિક માં, મનુષ્યમાં, મનુષ્ય સ્ત્રીમાં દેવમાં, દેવિયમાં અને જદ્ધામાં કયા છો કયાજના કરતાં અલ્પ છે? કયા છે ક્યાથી
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy