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________________ ૪૨૨ जीवाभिगमसूत्रे पूर्णौदा रिकशरीरपर्याप्तिपरिसमाप्त्यपेक्षं सूत्रम् तत्र - विग्रहसमयादारभ्य यावदौदारिकशरीरपर्याप्तिपरिसमाप्ति स्तावदन्तर्मुहूर्तम् तत उत्कर्षतोऽन्तर्मुहूर्त विवेकः । ' अजोगिस्स नत्थि अंतर" अयोगिः सायपर्यवसितस्यान्तरं नास्ति अपर्यवसितस्वात् । 'अप्पाबहु०' सव्वत्थोवा मणजोगी' अल्पबहुत्वविचारणायां सर्वस्तोका मनोयोगिनः, देव नारक - गर्भज - तिर्यक् पञ्चेन्द्रियमनुजानामेव मनोयोगित्वात् । ' व जोगी असंखेज्जगुणा' तेभ्यो वचोयोगिनोऽसंख्येयगुणाः जोगी का अन्तर जघन्य से एक समय का है और उत्कृष्ट से एक अन्तर्मुहूर्त का है जघन्य रूप से अन्तर प्रतिपादन करने वाला यह सूत्र औदारिककाययोग की अपेक्षा करके कहा गया है क्योंकि दो समय वाली अपान्तराल गति में एक समय का अन्तर होता है और उत्कृष्ट से जो एक अन्तर्मुहूर्त का अन्तर कहा गया है वह परिपूर्ण औदारिक शरीर पर्याप्ति की परिसमाति की अपेक्षा से कहा गया है क्योंकि विग्रह समय से लेकर औदारिक शरीर पर्याप्ति की पूर्णता तक एक अन्तर्मुहूर्त का अन्तर होता है 'अजोगिस्स नत्थि अंतरं सादि अपर्यवसित अयोगी के अन्तर अपर्यवसित होने के कारण नहीं होता है । अल्पबहुत्व का विचार - 'सम्वत्थोवा मणजोगी' मनोयोगी सब से कम है क्योंकि देव, मनुष्य, नारक, गर्भज, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, और मनुष्य ये सब ही मनोयोगी होते हैं 'वइजोगी असंखेज्जगुणा' अतोमुहुत्तं' सभवु'. 'काययोगिस्स जहणेणं एक्कं समयं उम्कोसेणं કાય ચૈાગીનું અંતર જઘન્યથી એક સમયનું છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ એક અંતર્મુહૂર્તનુ અંતર છે. જઘન્ય પણાથી અતરનું પ્રતિપાદન કરવાવાળું આ સૂત્ર ઔદારિક કાયસેગની અપેક્ષાથી કહેવામાં આવેલ છે. કેમકે એ સમય વાળી અપાન્તરાલ ગતિમાં એક સમયનુ અંતર હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી એક અંતર્મુહૂતનું જે અંતર કહ્યું છે તે સંપૂર્ણ ઔદારિક શરીર પર્યાસિની સમાપ્તિની અપેક્ષાથી કહેવામાં આવેલ છે. કેમકે વિગ્રહ સમયથી લઈને ઔદ્યારિક શરીર પર્યાસિની પૂ`તાપન્ત એક અંતર્મુહૂત નું અંતર હોય છે. 'अजोगिस्स नत्थि अंतरं' साहि अपर्यसित भयेोगीने मंतर पर्यवसित હોવાના કારણે હોતુ' નથી. અપ મર્હત્વનું કથન 'सव्वत्थोवा मणजोगी' भनोयोगी सौथी गोछा है, भदेव, मनुष्य, નારક, ગજ, પંચેન્દ્રિય તિયચ અને મનુષ્ય એ બધાજ મનાયેગી હોય છે
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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