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'प्रमैयद्यौतिका टीका प्र.१० सू.१४२ प्रकारान्तरेण द्वैविध्यम्
१३६५ तं जहा छउमत्थ अणाहारए य केवलि अणाहारए य' अनाहारकः खलु भदन्त ! कियच्चिरं कालतः ? गौतम ! अनाहारको द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-छद्मस्थानाहारकश्च केवल्यनाहारकश्च । 'छउमस्थ अणाहारएणं मंते ! जाव केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एक समयं-उकोसेणं दो समया' छद्मस्थानाहारका खलु कालतो भदन्त ! कियच्चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येनैकं समयस्-उत्कर्षण द्वौ समयौ जघन्याधिकाराद् द्वि सामयिकी विग्रहगतिमपेक्ष्यैतत् । 'केवलि अणाहारए दुविहे पन्नत्ते-तं जहा-सिद्ध केवलि अणाहारए य भवत्थ केवलि अणाहाजीव अनाहारक रूप ले कितने काल तक रहता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! अनाहारक दो प्रकार के कहे गये हैं-'तं जहा' जैसे 'छउमस्थ अणाहारए य केवलि अणाहारए य' एक छद्मस्थ अनाहारक और दूसरे केवल्यानाहारक इनमें हे भदन्त ! जो छद्भस्थानाहारक जीव हैं वह छद्मस्था नाहारक रूप से कितने काल तक रहता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! हे गौतम ! छद्भस्थानाहारक कम से कम एकसमय तक और उत्कृष्ट से दो समय तक छद्मस्थानाहारकपना से रहता है। दो समय तक छद्मस्थानाहारक रूप से रहने का जो समय कहा गया है वह दो समय वाली विग्रहगति की अपेक्षा से कहा गया है क्योंकि जीव इन समयों में अनाहारक रहता है । 'केवलि अणाहारए दुविहे पण्णत्ते' केवली अनाहारक दो प्रकार के कहे गये है जैसे एक सिद्धकेवलि-अनाहारक और दूसरे अवस्थ केवलि अनाहारक णं भंते केवच्चिरं भगवन् मानाडा२४ ७१ मनाहा२४ थी l am पन्त रहे छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४छे छे 3-'गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते गौतम ! मना २४ मे प्रा२न। वामां मावा छे. ''त जहा' म 'छउमत्थअणाहारए य केवलि अणाहारए य मे४ ७५२५ मिनाहा२४ અને બીજા કેવલી અનાહારક તેમાં જે છદ્મસ્થ અનાહારક જીવ છે તે છદ્મસ્થા અનાહારક પણાથી કેટલા કાળ પર્યન્ત રહે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ४ छ -'गोयमा !' गौतम ! छमस्थ मनाहा२४ माछा मां मेछ। मे४ સમય પર્યન્ત અને ઉત્કૃષ્ટથી બે સમય પર્યન્ત છવાસ્થ અનાહારક પણથી રહે છે. બે સમય સુધી છવસ્થ અનાહારક પણાથી રહેવાનો જે સમય કહેવામાં આવેલ છે. તે બે સમયવાળી વિગ્રહ ગતિની અપેક્ષાથી કહેવામાં सात छ. भ3-0१ मा समयोमा मना२४ २ छ. 'केवलि अणाहारए दुविहे पण्णत्ते पक्षी मनाई।२४ मे. प्रा२न वाम मावा छे. म