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________________ 2011 जीवाभिगमसूत्र ___ अथ प्रथमसमयाऽप्रथमसमयानां प्रत्येकमल्पवहुत्वम् -'दोण्हें अप्पबहू' द्वयोरल्पबहुत्वम्, हे भदन्त ! प्रथमसमयाऽप्रथमसमयैकेन्द्रियद्वीन्द्रियादीनां फतरेभ्यः कतरेऽल्पा वा० प्रश्नः ? भगवानाह-गौतम ! 'सव्वथोवा पढमसमयएगिदिया' प्रथमसमयैकेन्द्रियाः सर्वस्तोकाः: अल्पानामेकसमये द्वीन्द्रियादिभ्य आगतानामुत्पादात् । “अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा' एभ्योऽप्रथमसमयकेन्द्रिया अनन्तगुणाधिकाः वनस्पतीनामानन्त्यात् । 'सेसाणं सव्वत्थोवा पढमसमया अपढमसमइया असंखेजगुणा' शेपाणां द्वीन्द्रियादीनां सर्वस्तोकाः प्रथम'गये हैं यही वात 'णवरं अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा' इस सूत्र द्वारा प्रकट की गई है। प्रत्येक प्रथम समयवर्ती और अप्रथम समयवर्ती एकेन्द्रियादिक जीवों का अल्पबहुत्व कथन-'दोण्ह अप्प बहू' हे भदन्त ! प्रथलसमयवर्ती और अप्रथमसमयवर्ती जो एकेन्द्रिय दोइन्द्रियादिक जीव हैंइनमें कौन किनकी अपेक्षा अल्प हैं ? कौन किनकी अपेक्षा बहुत हैं? कौन किनके बराबर हैं ? और किनकी अपेक्षा विशेषाधिक हैं ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सम्वत्थोवा पढमसमयएगिदिया' हे गौतम ! सबसे कम प्रथम समयवर्ती एकेन्द्रिय जीव है क्योंकि ऐसे एकेन्द्रिय जीव जो कि दीन्द्रियादिक जीवों की पर्याय से आ करके यहां उत्पन्न होते है बहुत ही कम होते हैं । 'अपढम समय एगिदिया अणंतगुणा' इनकी अपेक्षा जो अप्रथम समयवर्ती एकेन्द्रिय जीव हैं वे अनन्तगुणे अधिक है क्योंक ऐसे एकेन्द्रियों में वनस्पति कायिक जीव भी आते हैं और वे अनन्त हैं । 'सेसाणं सम्वत्थोवा - પ્રત્યેક પ્રથમ સમયવતી અને અપ્રથમ સમયવતી એકેન્દ્રિયાદિક __ &ाना म८५ “मत्वनु ४थन-'दोण्हं अप्प बहू' मगवन् ! પ્રથમસમયવતી અને અપ્રથમસમયવતી જે એકેન્દ્રિય, હીન્દ્રિય. વિગેરે જીવે છે, તેમાં કયા જી કેના કરતાં અલ્પ છે? ક્યા છો કયા જીવો કરતાં વધારે છે? કયા જીવે કેની બરાબર છે અને કયા જીવે होनाथी विशेषाधि छे.. मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'सव्वत्थोवा पढमसमयएगिदिया गौतम ! सौथी या प्रथम समयवती मन्द्रिय છો છે. કેમકે એવા એક ઈન્દ્રિયવાળા છે કે જે બે ઈદ્રિય વિગેરે જાની पर्यायथी मातीन महीया पन्नं थाय छे. या घर म८५ छे. 'अपढम समयएगिदिया अणंतगुणा' तन'४२i मप्रथम समयवती २ मेन्द्रिय છે, તેઓ અનંતગણું વધારે છે. કેમકે એવા એકેન્દ્રિય જીવમાં વનસ્પતિ यि४ सय ५५ साली लय छ, मन तथा मन त छ. 'सेसाणं सव्वत्थोवा Deltakin
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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