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________________ 'प्रमैयद्योतिका टीका प्र.९ सू.१३९ दशविध सं० सं० जीवनिरूपणम् १३१५ नीया । 'अपढमसमयबेइंदियस्स जहन्नेणं खुडागं भवग्गहणं समऊर्ण' अप्रथमसमयद्वीन्द्रियस्य जघन्येन समयोनक्षुल्लक भवग्रहणम् । 'उक्कोसेणं जा जस्सठिई सा समऊणा जाव पंचिंदियाणं वेत्तीस सागरोवमाइं समऊणाई उत्कर्षण या यस्य स्थितिः सा समयोना कार्या यावत्पश्चेन्द्रियाणां त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि समयो 'नानि तत्राऽप्रथमसमयद्वीन्द्रियसूत्रे जघन्यं समयोनक्षुल्लकभवग्रहणं पूर्ववत् १, उत्क पतः समयोन द्वादश संवत्सराः समयोनाः २ ।.अप्रथमसमयत्रीन्द्रियेऽपि जघन्यं तयैव पूर्ववत् १ उत्कर्षत एकोन पश्चाशद् रात्रिदिवानि समयोनानि । अप्रथमसमय• चतुरिन्द्रियसूत्रेऽपि जघन्यं पूर्ववत्-१ उत्कर्षतः समयोना षण्मासाः २ । अप्रथम की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्टस्थिति भी एक ही अन्तर्मुहूर्त की है । 'अपढम समय० जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं जा जस्स ठिई सा समऊणा जाव पंचिंदियाणं 'तेत्तीसं सागरोवमाइं समऊणाई' अप्रथम समयवर्ती एकेन्द्रियादिक जीवों की स्थिति जघन्य से तो एक समय कम क्षुल्लक भव ग्रहण रूप है और उत्कृष्ट से अपनी २ कही गई स्थिति के अनुरूप है पर उत्कृष्ट स्थिति में से एक २ समय कम करके वह उन जीवों की कही गई है जैसे द्वीन्द्रिय जीव जो कि अप्रथम समयवर्ती है उसकी जघन्य स्थिति एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहणरूप है और उत्कृष्टस्थिति 'एक समय कम १२ वर्ष की है तेइन्द्रिय जीव की जो कि अप्रथमसमयवर्ती है उसकी स्थिति जघन्य से तो एक समय कम क्षुल्लक भव ग्रहण रूप है और उत्कृष्ट स्थिति एक समय कम ४९ दिन रात की है। अप्रथम समयवर्ती चौइन्द्रिय जीव की जघन्य स्थिति एक उत्कृष्ट स्थिति प ४४ मत इतनी छ. 'अपढमसमय० जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं जा जस्स ठिई सा समऊणा जाव पंचिंदियाणं तेत्तीसं सागरोवमाई समऊणाई' मप्रथम समयवती' मे द्रिय વિગેરે ની સ્થિતિ જઘન્યથી એક સમય, કમ ભુલક ભવગ્રહણ રૂપ છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પિત પિતાની કહેવામાં આવેલ સ્થિતિ પ્રમાણે છે. પરંતુ આ ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિમાંથી એક એક સમય એ છે કરીને તે સ્થિતિ એ જીની કહેવામાં આવેલ છે. જેમકે–જે અપ્રથમ સમયવતી એ ઈદ્રિયવાળા જીવે છે તેઓની સ્થિતિ જઘન્યથી એક સમય કમ ક્ષુલ્લક ભવ ગ્રહણ રૂપ છે. અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ એક સમય કમ ૧૨ બાર વર્ષની છે. અપ્રથમ સમયવતી તે ઈદ્રિય જીવની જઘન્ય સ્થિતિ એક સમય કમ ક્ષુલ્લક ભવગ્રહણ રૂપ છે અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ એક સમય કમ ૪૯ ઓગણપચાસ દિવસ રાતની છે. આ પ્રથમ સમયવતી ચાર ઈદ્રિયવાળા જીવની જઘન્ય સ્થિતિ એક સમય કમ
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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