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जीवाभिगम
जीवाः खलु भदन्त | कतिविधाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम । द्विविधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा - सूक्ष्म निगोदजीवाश्च, वादर निगोदजीवाश्च । उभयत्र चकारौ निगोदजीवतया तुल्यताप्रदर्शक | 'सुहुमनिओयजीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जतगा य' सूक्ष्म निगोदजीवा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा - पर्याप्तकाश्चाऽपर्याप्तकाम 1 उभयत्र चकारौ तुल्यतां द्योतयतः । 'वायरनिओयजीवा दुविहा पन्नचा तं जहा - पज्जत्तगाय अपज्जत्तगाय' वादरनिगोदजीवा द्विविधा प्रज्ञप्ता - स्व-, द्यथा-पर्याप्तकाश्चाऽपर्याप्तकाश्चेति ॥ ० ॥ १३४ ॥
सामान्यतो निगोदवर्णम् –
मूलम् - निओयाणं भंते! दव्वट्टयाए किं संखेज्जा, असं खेजा, अनंता ? गोयमा ! नो संखेज्जा असंखेज्जा नो अनंता; एवं पजत्तगा वि अपजत्तगा वि । सुहुमणिओयाणं भंते | दबटुयाए किं संखेज्जा असंखेजा अनंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेजा नो अनंता, एवं पजत्तगा वि अपजत्तगा वि । एवं बायरा वि पंज्जत्तगा वि अपज्जत्तगा वि नो संखेज्जा असंखे-ज्जा णो अनंता । निओयजीवाणं भंते! दव्वट्टयाए किं
दो प्रकार के कहे गये है जैसे- 'सुहुम णिओद जीवा य वायरणिओय जीवा य' सूक्ष्म निगोद जीव और बादर निगोद जीव निगोद जीवों मैं तुल्यता सूचन करने के सूत्र में दो 'च' शब्द प्रयुक्त किये गये हैं । 'सुम णिओदजीवा दुविहा पण्णत्ता' सूक्ष्म निगोद जीव दो प्रकार के कहे गये हैं जैसे 'पज्जन्तगा य अपज्जत्तगा य' एक पर्याप्तक और दूसरे अपर्याप्तक 'बायर णिओद जीवा दुविहा पण्णत्ता' बादर निगोद जीव दो प्रकार के कहे गये हैं- जैसे 'पज्जन्तगा य अगज्जतगा
' एक पर्याप्तक और दूसरे अपर्याप्तक ॥१३४॥
लव मे अहारना उडेवामां आवे छे. प्रेम - 'सुहुमणिओय जीवाय बायरणिओद નીવાય' સૂક્ષ્મ નિગેાદ છત્ર અને માદર નિગેાદ જીવ નિગાઢ જીવામાં તુલ્યત્વ मताववा भाटे सूत्रभां 'थ' न प्रयोग श्वामां आवे छे. 'सुहुमणिओद जीवा दुविहा पण्णत्ता' सूक्ष्म निगोह कप में अहारना उडेवामां आवे छे. भ'पज्जन्तगाय अपज्जत्तगाय' मे पर्याप्त भने मीले पर्यास 'बायरणिगोद जीवा दुविहा पण्णत्ता' महरनिगोह व पशु में अहारना भ- 'पज्जत्तगाय अपज्जत्तगाय' मे पर्या ४ मने मील
वामां आवे छे. पर्यास ॥ १३४ ॥