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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.५ सू.१२९ पृथ्वीकायादि घण्णामल्पबहुत्वनिरूपणम् ११८८ क्षण्यम्' । 'एवं जाव सुहुम णिओयस्स' एवं यावत् सूक्ष्म पृथिव्यादि कायानिगोदान्तस्य । न्नु-सूक्ष्मवनस्पतिनिगोदा एव ततस्तत्सूत्रेणैव गतार्थता किमर्थ निगोदसूत्रं पृथनिर्दिश्यते इति चेन्न अभिप्रायाऽनववोधात्, सूक्ष्मवनस्पतयो हि जीवा , विवक्षिताः सूक्ष्मनिगोदास्तु-प्रत्येकमनन्तजीवानामाधारभूताः शरीररूपाः तत उभयोर्भेदः, उक्तश्व 'गोला य असंखेज्जा असंख निगोदो य गोलओ भणिओ । एकिकमि निगोए अणंतजीवा मुणेयव्वा ॥१॥ एगो असंखभागा वट्टइ उन्धट्टणोववायंमि । एग निगोदे णिच्चं एवं सेसेसु वि स एव ॥ २ ॥ अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। परन्तु उत्कृष्टस्थिति का जो अन्तर्महत है वह जघन्यस्थिति के अन्तर्मुहूर्त से बडा होता है 'एवं जाव सुहुम णिओयस्स' इसी तरह सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म अकायिक, सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्मवायुकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और निगोद इन सब की भी जघन्य और उत्कृष्टस्थिति एक एक अन्तहूर्त की है। यदि यहां पर ऐसी आशंका की जाय कि जश सूक्षम जो वनस्पति कायिक है वे निगोद स्वरूप ही हैं तो फिर इनके स्वतन्त्र सूत्र के कहने की क्या आवश्यकता है ? सो ऐसी आशंका ठीक नहीं हैं क्योंकि सूक्ष्म वनस्पति जीवरूप से विवक्षित किये गये हैं । उक्तंच 'गोला य असंखेज्जा असंखनिगोदो य गोलओ भणिओ, एक्किरकमि निगोए अणंतजीवा पुणेयव्वा ॥१॥ एगो असंखभागो वह उव्वणोववायंनि । एग निगोदे निच्चं एवं सेसेसु वि स एव ॥२॥ ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિનું જે અંતર્મુહૂર્ત છે તે જઘન્ય સ્થિતિના અંતમુહૂર્તથી મોટું डाय छे. 'एवं जाव सुहमणिओयस्स' से प्रमाणे सूक्ष्म पृथ्वीयि, सूक्ष्म અષ્કાયિક સૂક્ષમ તેજસ્કાયિક, સૂમ વાયુકાયિક, સૂક્ષ્મ વનસ્પતિકાયિક અને નિગદ આ બધાની જઘન્ય સ્થિતિ પણ અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ પણ એક એક અંતમુહૂર્તની છે. જે અહીયાં એવી શંકા કરવામાં આવે કે-જ્યારે સહમ જે વનસ્પતિકાયિક નિગોદ રૂપ જ છે. તે પછી તેના માટે સ્વતંત્ર સૂત્ર કહેવાની શી જરૂર છે? તે આ પ્રમાણેની શંકા બરાબર નથી. કેનકે સૂકમવનસ્પતિ જીવ પણાથી વિવક્ષિત કરવામાં આવેલ છે. કહ્યું પણ છે કે 'गोलाय असंखेज्जा असंखनिगोदो य गोलओभणिओ । एक्किक्कमि निगोए अणतजीवा मुणेयव्वा ॥ १ ॥
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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