________________
जीवाभिगमन अट्ठकोसे बाहल्लेणं पण्णत्ते' अधः सप्तम्याः पृथिव्या स्तनुवातवलयः परिपूर्णान् .. अष्टकोशान् बाहल्येन प्रज्ञप्त इति । उक्तश्च
'छच्चेव१अद्धपंचमरजोयण सह३ च होइ रयणाए । उदही१ घण२ तणुवाया३ जहासंखेण निदिवा ॥१॥ सतिभाग१ गाउयं२ च तिभागो गाउयस्स३ वोद्धव्यो। आइधुवे पक्खेवो अहो अहो जाव सत्तमिया ॥२॥ 'पडेवार्द्ध पश्चमयोजनं सार्द्धं च भवति रत्नायाः। उदधि धन तनुवावा यथासंख्येन निर्दिष्टाः ॥१॥ सत्रिभागगव्यूतञ्च त्रिभागो गव्यूतस्य बोद्धव्यः ।
आदि ध्रुवे प्रक्षेपोऽधोऽधो यावत् सप्तम्याः ॥२॥ इतिच्छाया। अस्य गाथाद्वयस्यायं भावः-'छच्चेव' इत्यादि । पट १, अर्द्ध पञ्चमानि २, सार्द्धयोजनं ३ चेति क्रमशो रत्नप्रभा पृथिव्यां घनोदधे १, घनवातस्यर, तनुः सत्सकोसे' धूमप्रभा पृथिवी का तनुवातबल तृतीय भाग सहित सात कोश का तिर्यग्वाहल्य की अपेक्षा मोटा कहा गया है।
'तनप्पभाए पुढबीए अट्ठकोले बाहल्लेणं पनन्त' समातमा पृथिवी का तनुवात बलय कोश के तृतीय आग कम आठ कोश का तिर्यग्पाइल्य की अपेक्षा मोटा कहा गया है 'अहे सत्तमाए पुढवीए अहः कोले बाहल्लेणं पन्नत्ते' सातवीं पृथिवी का तनुबात बलय तिर्यग्वाहल्य की अपेक्षा आठ कोश का मोटा कहा गया है। जैसे अन्यत्र कहा है'छच्चेव' इत्यादि गाथा ॥२॥ , इन दो गाथाओं का भावार्थ इस प्रकार है-'छच्चैय' इत्यादि । रत्नप्रभा के घनोदधि पृथिवी के बाहल्प का प्रमाण 'छच्चेव' छह
सत्तकोसे' धूममा पृथ्वीना तनुपातपतय श्रीn an सहित सात सना विश तियायनी अपेक्षाथी उस 2. 'तमनभाए पुढवीए अद्वकासे बाहल्ले ण पन्नत्ते' तभप्रमा पृथ्वीना तनुपातसय अस ॥ त्रीon माथी प्रभ मा ने तियायनी अपेक्षा ४ छ. 'अहे सत्तमाए पुढवीए अठुकोसे पाहल्लेण' पन्नत्ते' सातमी पृथ्वीना तनुपातपय तियायनी अपेक्षायी આઠ કેષની વિશાળતા વાળો કહેલ છે. જેમકે બીજે કહ્યું છે કે 'छच्चेव' इत्याहि गाथा २
मामे गाथाना अथ' मा प्रभार छ 'छच्चेव' त्यादि - २नमा पृथ्वीना धन धिना माझ्यनु प्रभाएर 'छच्चेव' ७ थाना