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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ १.४९ वानव्यस्तरदेवानां भवनादिकम् ७८९ कालस्य खलु पिशाचकु पारेन्द्रप पिशाचकुमारराजस्य 'अमितरियाए परिसाए' आम्पन्तरिकायाम् ईशाभिधानायां पदि-मायाम् ‘देवाणं अद्धपलिओभ ठिई पन्नता' देवानामर्द्धपल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता, तथा-'मज्झिसियाए परिसाए देवाणं' माध्यमिकायां पर्षदि देवानाम् 'देमूणं अद्धपलिओवर्स ठिई पन्नत्ता' देशोन-देश परिहीणम् अर्द्धपल्योपमं स्थिति: प्रज्ञप्ता, तथा-'बाहिरियाए परिसाए देवाणं' बाहूयायां पर्षदि देवानाम् 'साइरेगं चउ मागपलिओवमं ठिई पन्नत्ता' सातिरेक चतुर्भागपल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता, एवम्मू-'अमितरियाए परिसाए देवी' आभ्यन्तरिकायां पदि देवीनाम् 'साइरेगं चउभागपलिओवमं ठिई पणत्ता' सातिरेकं चतुर्भागपल्योपमं स्थितिः प्रज्ञा, तथा 'मज्झिमियाए परिसाए देवीणं' माध्यमिकायां पर्षदि देवीनाम् 'चउभागपलिमोबम ठिई पन्नत्ता' चतुर्भागपल्योगमं स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'बाहिरियाए परिसाए देवीण' बाहू यायां पर्षदि देवीन'म् 'देखणं उत्सर में प्रभुश्री कहते है 'गोयमा !' फाल हल णं पिसाय कुमारिदास पिसायकुमारणो अभितरियाए परिसाए देवाणं अद्धपलिओम ठिई पन्नत्ता' हे गौतम! पिशाच कुमारेन्द्र पिशाबराजकालकी आभ्यन्तरपरि पदा के देवों की स्थिति बध्यमान आयु आधेपल्पोपमशी कही गई है। 'मज्झिमियाए परिसाए देसूर्ण अद्धपलि मोमं ठिई एनत्ता' सध्यमिका परिषदा के देवों की स्थिति कुछ कम आधे पल्पोपमकी कही गई है और 'याहिरियाए परिसाए देवाणं सारेग बउ मागपलिओ ठिई पन्नत्ता' वाद्यपरिषदा के देवों की स्थिति कुछ अधिक लपके चतुर्थ भागप्रमाण कही गई है। इसी प्रकार 'अभितरियाए परिसाए देवी णं इत्यादि आभ्यन्तर परिषदो की देवियों की स्थिति सातिरेक चतुर्भागल्योपम की है मध्यपरिषदा की देवियों की स्थिति चतुर्भाग पल्योरमकी कही प्रभुश्री गौतमत्वामान छ है 'गोयमा ! फालरस ण पिघायकुमारिदस्स पिसायकुमाररण्णो अभंतरियाए परिसाए देवाण अद्धपलि भोत्रम ठिई पण्णत्ता' હે ગૌતમ પિશાચ કુમારેદ્ર પિશાચ કુમારરાજ કાલ ઈન્દ્રની આભ્ય તર પરિ. દાન દેવેની સ્થિતિ બધ્યમાન અયુ અર્ધાપલ્યોપમની કહેવામાં આવી છે. 'मज्झमियाए परिसाए देसूणं अद्धपलि ओवम ठिई पगत्ता' भक्ष्यमा परिवाना हेवानी स्थिति ४४ माछी अर्धा ५८या५मती मने 'बाहिरियाए परिसाए देवाण साइरेग चउभोगपलिओवम ठिई पण्णत्ता मा पहिषाना हेवानी स्थिति ४ पधारे पक्ष्यना व्याया मा प्रभाए 3a छे ४ प्रमाणे 'अन्मि' तरियाए परिसाए देवीण' त्या माय-त२ परिषहानी लियोनी स्थिति सात રેક કંઈક વધારે ચતુગ પોપમની છે. મદરામાં પરિષદાની દેવિયની સ્થિતિ
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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