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________________ प्रतिकाम. उ. ३ . ४८ नागकुमाराणां भवनादिद्वारनिरूपणम् ७६१ जल का 39 प्रज्ञा, एवम् - भूतानन्दस्य नागकुमारेन्द्राय 'अभितरियार परिसाए' आभ्यन्तरिकायां समिताभिधानायां पर्पदि देवीनाम् ' अद्वपलियोमं ठिई पन्नत्ता' अर्द्धपल्योपमपमाणात्मिका स्थितिः प्रज्ञा, तथा - 'मज्झिमियाए परिसाए देवीणं' माध्यमिकायां पदि देवीनाम् 'देमू णं अद्धपछिओत्रमं टिई पन्नन्ना' देशोनंदेशन्यूनम् अर्द्धवल्योपम स्थितिः प्रज्ञप्ता, तथा - 'बाहिरियाए परिसाए देवीणं' बाह्यां पदम् 'साइरेगं चउभागपलिओवम' पल्योपमस्य चतुर्थभाग परिमितं स्थितिः प्रज्ञप्ता 'अत्थो जहा चमरस्स' अर्थो यथा चमरस्य चमरस्य - असुरकुमारराजस्य पदः समितादिनामव्यपदेश करणं यथायथं तत्केनार्थेन भदन्त । एवमुच्यते, इत्यादि पश्नोत्तरकरणे कथितं तथैव भूतानन्दस्य नागकुमारेन्द्रस्य नागकुमारराजस्य पर्पदः समिता - चण्डाजातानामाभ्यन्तरका माध्यमिका बाह्याभिधानकारणं ज्ञातव्यमिति । 'अवसेसाणं वेणुदेवादीणं महाघोस साए देवाणं अपलिओयम ठिई पण्णत्ता' वाह्य परिषदा के देवों की स्थिति भवस्थिति आधे पत्योपम की कही गई है। इसी तरह से 'अतिरिया परिमाए देवीणं श्रपलि ओवमं ठिई पण्णत्ता' नागकुरेन्द्र नागकुमारराज भूतानन्द की आभ्यकार परिषदा की देवियों की स्थिति आधे पोप की कही गई है । 'मज्झिमियाए परिसाए देवीणं अद्धपलिओचमं डिई पण्णत्ता' मध्यमा परिषदा की देविकों की स्थिति कुछ कम आधे पल्योपम की कही गई है। 'बाहिरियाए परिसाए देवीणं साइरेगं उभागपलिओचमं ठिई पन्नत्ता' बाह्या परिषदा की देवियों की कुछ अधिक पल्प के चतुर्थ भाग प्रमाण स्थिति कही गई है ! 'अस्यो जहा चमरस्न' यहां हे भदन्त ! इनकी समितियों का ऐसा नाम क्यों कहा गया है' इस तरह के प्रश्न का उत्तर जैसा चमर के प्रकरण में अपनी छे 'बाहिरियाए परिसाए देवाण अद्धपलिओत्रम ठिई पण्णत्ता' ह्या परिषहाना देवानी स्थिति लत्रस्थिति अर्धा पहयेोमनी उडेल छेथे ४ प्रभो 'अभितरियार परेसाए देवीणं अद्धपलिश्वम ठिई पण्ण સા' નાગકુમારૅન્દ્ર નાગકુમારરાજ ભૂતાનઢની અભ્યંત પરિષદાની દવાની स्थिति अर्धा यथेोपमनी वामां आवे छे. 'मज्झिमियाप परिमाए देवीणं देणं अद्धप ओवम ठिई पण्णत्ता' मध्यमा परिषद्वानी देवियोनी स्थिति ४६६ ક્રમ અર્ધો પત્યેાપમની કહેલ છે 'बाहिरियाए परिसाए देवीणं साइरेग' चटभागपलिओम ठिई पन्नत्ता' हा परिषदानी हेवियानी स्थिति ४ वधारे पस्यना थोथा लागू प्रभावामां गावी हे 'अत्थो जहा चमर' અહિયાં હે ભગવન્ તેમની સમિતિઓના એ પ્રમાણેના નામે કેમ કહ્યા जी० ९६
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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