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________________ जीवामिगमस्ते देवीशतं प्रज्ञप्तम्, 'बाहिरियाए परिसाए पप्णवीसं देविस्यं पारतं' वाह्यायां जाताभिधानायं पर्षदि पश्चविंशत-पश्चविंशत्यधिक देवी शतं प्रज्ञतम् इति पर्पः । द्विषय मुत्तरमिति । सम्पति-धरण पर्पत् स्थित देव देवीनां स्थिति दर्शयितमाह'धरणस्स णं इत्यादि, 'धरणस्त णं रनो' हे शदन्त ! धरणस्य नागकुमारेन्द्रस्य नागकुमारराजस्य 'यभितरियाए परिसाए' आश्यन्तरिकायां समिताभिधानार्या पर्पदि 'देव.णं केवइयं कालं ठिई पामत्ता' देवानां कियातं कालं स्थिति:-आयुष्यकाळा-मज्ञप्ता, तथा-'मज्झिमियाए परिसाए' माध्यमिक्षायां पर्पदि 'देवाणं कियन्तं कालं स्थिति प्रज्ञप्ता तथा वाहिरियाएपरिसाए जाताभिधानायां पर्पदि 'देवाणं केवइयं कालं ठिई पानत्ता' देवानां किया कालं स्थिति प्रज्ञप्ता-कथिता तथा-'अमितरियाए परिसाए' आभ्यन्तरिका सहितायां पर्षदि 'देवीणं केवइयं काल ठिई पन्नत्ता' देवीनां कियन्तं कालं स्थितिः जिप्ता, तथा 'वाहिरियाए १५० देवियाँ है । बाय परिषदा में १२५ देवियां है । अघ धरणेन्द्रकी परिषत के देव देवियों की स्थिति कहते हैं-'धरणस्स णं रनो' इत्यादि 'धरणसणं रनो अभितरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालंठिती पण्णत्ता' नागकुमारेन्द्र नागकुमारराजधरण की आमन्तर परिषदा के देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है। 'मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता' मध्यमा सभा के देयों की कितने काल की स्थिति कही गई है। 'वाहिरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिनी पण्णत्ता' और पाह्या परिषदा के देवों की स्थिति शितने काल की कही गई है। इसी प्रकार से नागकुमारेन्द्र नागकुमारराजघरण की એક પંચોતેર દેવિ છે. મધ્યમ પરિષદામાં ૧૫૦ દોઢસો દેવિયો છે. બાહ્ય પરિષદામાં ૧૨૫ સવાસો દેવિયો છે. હવે ધરણેન્દ્રની પરિષદના દેવ દેવિયની સ્થિતિ કહેવામાં આવે છે. 'धरणस्स गं रन्नो' त्याहि । 'धरणस्स गं रन्नो अभितरियाए परिसाए देवाण' केवतिय कालं ठिई पण्णच सगवन् नागभारेन्द्र नागभार २१०४ धनी मान्यन्त२ ५षिहाना देवानी स्थिति सा नी वामां आवे छ ? 'मन्झिमियाए परिसाए देवाणं केवइय' काल ठिई पण्णता' मध्यमा समानावानी स्थिति सानी Bछे १ 'बाहिरियाए परिसाए देवाण केवइयं काल ठिई पण्णत्ता' भने पाह પરિષદા દેવોની સ્થિતિ કેટલા કાળની કહેવામાં અાવેલ છે ? એજ પ્રમાણે नागभारेन्द्र नामा२ २०८ ५२नी 'अभि तरियाए परिसाए देवीण केवइय काल ठिई पण्णत्ता, मज्झमियाए परिसाए देवीण केवइय काल ठिई पण्णत्ता
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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