________________
५२
जीवाभिगमध्ये विद्यमानस्य घनोदधेः संस्थानं दर्शयितुमाह-सक्करप्पाए' 'इत्यादि, 'सक्करप्पभाए पुढवीए' शर्करामभायाः पृथिव्याः 'घणोदही किं संस्थितः मज्ञप्त:-कथित इति प्रश्नः, भगवानाम-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'झल्लरी संठिए पन्नत्ते' शर्करोममायाः घनोदधिः झल्लरी संस्थानसंस्थित एक प्रज्ञप्तः विस्तीर्णवलयाकारत्वादेवेति । एवं जाव ओवासंतरे' एवं यावदवकाशान्तरम्, यावत्पदेन धनवात तनुवातयोः संग्रहः तथा च शर्करापमाऽधोविधमानधनवाततनुवाता वकाशान्तर मेतत् सर्व झल्लरी संस्थितमेवेति ज्ञेयम् । 'जहा सकरप्पभाए क्त्तव्बया कि यह भी विस्तीर्ण वलय के जैसी-है 'सकरप्पभाए पुढवीए घणो. दही किं संठिया' हे भदन्त ! शर्करा प्रभा पृथिवी के अधोभाग में जो घनोदधिवात बलय है वह कैसे आकार वाला है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं गोयमा 'हे गौतम ! 'झल्लरी संठिए पन्नत्ते' शर्कराप्रभा पृथिवी के अधो भाग में अवस्थित जो घनोदधि वातवलय है वह भी झल्लरी के जैसे ही आकार वाला है। क्योंकि इसका जो आकार है वह विस्तीर्ण वलय के जेसा ही है। 'एवं जाव ओवासंतरे' इसी तरह से यावत् अवकाशान्तर तक कथन जानना चाहिये जैसे-शर्करा प्रभा गत जो घनोदधि वातवलय है-सो उस घनोदधि वातवलय के नीचे वर्तमान जो धनवात बलय है वह, और इस घनवात वलय के नीचे वर्तमान जो तनुवान वलय है वह एवं इस वातवलय के नीचे वर्तमान जो अवकाशान्तर है वह सष झल्लरी के जैसे ही आकार वाले हैं ऐसा जानना चाहिये 'जहा सक्करप्यभार वत्तव्यया एवं जाव आहे
सरना मा२ २१ मा २वाजी ही छे. 'सक्करप्पभार पुढवीए घणोदही कि संठिया' है सावन् श४२५मा पृथ्वीना नीयन मामा २२ रे घनादि વાતવલય છે. તે કેવા આકાર વાળે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે गोयमा ! 13 गौतमी 'झलरी सठिए पन्नत्ते' श६२२मा पृथ्वीनी नायना ભાગમાં રહેલ જે ઘનેદધિ વાતવલય છે, તે પણ ઝાલરના જેવાજ આકાર पापा 2. भ त २ विस्तृत मायाना वा छे. 'एवं जाव ओषा संतरे' से ४ प्रमाणे यावत् अवशन्त२ सुधिनु ४थन सभाभ શર્કરપ્રભામાં રહેલ જે ઘોદધિ વાતલય છે, તે ઘોદધિ વાત વલયની નીચે રહેલ જે ઘનવાત વલય છે, તે અને એ ઘનવાત વલયની નીચે રહેલ જે તનુવાત વલય છે, તે અને એ તનુવાત વલયની નીચે રહેલ જે અવકાશાન્તર છે. તે બધા ઝાલરના આકાર જેવાજ ગોળ આકારવાળા છે. તેમ સમજવું.
-