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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ २.६ रत्न भापृथ्व्याः संस्थाननिरूपणम् ४९ पृच्छति-'इमीसे णं' इत्यादि, 'इपीसे णं भंते' अस्याः खलु भदन्त ! 'रयणप्प. भाए पुढवीए' रत्नपभायाः पृथिव्याः 'खरकंडे' खरकाण्डम् 'कि संठिए पण्णत्ते' कि संस्थान कीदृशसंस्थानयुक्तं प्राप्तम् ? 'गोयमा !' हे गौतम | 'झल्लरी संठिए पण्णत्ते' झल्करी संस्थानं झल्लाकारं प्रज्ञप्तम् । 'इमीसे णं भंते' एतस्याः खल भदन्त ! 'रयणप्पभाए पुढवीए' रत्नपभायाः पृथिव्याः 'रयणकंडे' रत्न. काण्डम्, 'कि संठिए पनत्ते' तत् रत्नकाण्ड किं संस्थितं कीदृक् संस्थानयुक्तं प्रज्ञप्तं कथितमिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा !' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'अल्लरीसंठिए पत्ते' झल्लरी संस्थित रत्नकाण्डस्यापि विस्तीर्णवलयाकारत्वादेवेति १ । 'एवं जाव रिट्टे' एवं रत्नकाण्ड यथा झल्लरी संस्थितम्, तथैव वनकाण्डादारभ्य यावद्रिष्टकाण्डमिति वनकाण्डम् २, चैडूर्यकाण्डम् ३, लोहिताक्ष 'इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे कि संठिए पण्णत्ते' हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी में जो खरकाण्ड है वह सिंठिए पन्नते' किस संस्थान वालो कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! झल्लरी संठिए पन्नत्ते' हे गौतम! इस रत्न प्रभा प्रथिवी में जो खरकाण्ड है वह झल्लरी के जैसा आकार वाला कहा गया है क्योंकि यह भी विस्तीर्ण बलय के आकार जैसी है 'इमीसे ण भंते ! रयणप्पभाए पुढपीए रयणकंडे किं संठिए पन्नत्ते ?' हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी में जो रत्न काण्ड है वह कैसे आकार वाला कहा गया है ? 'गोयमा! झल्ली संठिए पन्नत्ते' हे गौतम ! बह झालर के जैसे आकार वाला कहा गया है 'एवं जाव रिट्टे' रत्नशाण्ड की तरह यावत् रिष्टकाण्ड भी झल्लरी के आकार जैसा ही कहा गया है यहां "इमोसे णं भंते। रयणप्पभाए पुढवीए खरकडे किं सठिए पण्णत्ते के भगवान मा २त्नमा ४ीमा २ प२४ छे, ते 'किं सठिए पन्नत्ते' या संस्थान पाणी ४३ छ ? | प्रशन उत्तम प्रभुशीतभाभीने ४ छ ? 'गोयमा! मल्लरी संठिए पन्नत्ते' है गीतम! मा २त्नप्रभा पृथ्वीमा रे मो , ते ઝલ્લરી-ઝાલરના જેવા ગોળ આકારવાળો કહ્યો છે. કેમકે આ પણ વિસ્તૃત मसायान मा२ ।४ छ. 'इमीसेणं भते । रयणग्पभाए पुढवीए रयणकड़े किं सठिए पन्नत्ते १' हे भगवन् मा २नमा पृथ्वीमा २ २isis છે, તે કેવા આકારવાળો કહેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે, 'गोयमा! ज्ञल्लरी सठिए पन्नत्ते' 3 गौतम ! ते आसरना मार 24 भा२पाणी हे छ १ 'एव जाव रिट्टे' २४isना ४थन प्रमाणे यावत् रिट કાંડપણ ઝાલરના આકાર જેવાજ આકારવાળો કહેલ છે. અહિંયા યાવત્ શબ્દથી जी०७
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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