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________________ - जीवामिगमस्से रोवणमहाइ चा' वृक्षारोपणमह इति वा, 'चेइयमहाइ वा' चैत्यमह इति वा चैत्यं यक्षायतनम् 'धूममहाइ वा' स्तूपमह इति वा स्तूपः पीठविशेषः तस्य मह उत्सवः, भगवानाह-'णो इणहे समढे' नायमर्थः समर्थः एतेपामिन्द्रादीनामुत्सवा न भवन्तीत्यर्थः, यता-'ववगयमहहिमाणं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो !' व्यपगतमहमहिमानः खल्ल ते-एकोषकद्वीपक मनुजगणा: मश:-कथिताः हे श्रमणायु. मन् ! 'अस्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे दीवे' अस्ति खल भदन्त ! एकोषकद्वीपे द्वीपे 'णडप्रेच्छाइ वा' नटप्रेक्षेवि वा उन नटा:-नाटयकर्तारः तेषां प्रेक्षा-प्रेक्षणकंकौतुकदर्शनोत्सुकजनसमुदाया, 'जट्टपेच्छाइ वा' नृत्यानृत्यकार स्तेपां प्रेक्षणकं तदर्शकिये गये उत्सव का नाम हद महोत्सव और पर्वत महोत्सव है 'रुक्खरोवणमहाहवा, चेहय महाइ वा वृक्षारोपण करने को लक्षित करके एवं यक्षायतन को लक्ष्य करके किये गये उत्सव का नाम वृक्षारोपण मह और चैत्य मह है 'थून महाह वा पाठी विशेष का नाम स्तूप है इस स्तूप को लक्षित कर के किये गये उत्सव का नाम स्तुप मह है सो हे भदन्त ! ये सघ महोत्सव क्या उस एकोरुक द्वीप में होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'जोहण समट्टे' हे गातम ! यह अर्थ समर्थ नही है अर्थात् ये इन्द्रादिनह (उस्मान) यहां पर नहीं है। क्योंकि-'ववगयमहमहिमाण लेमणुयाणा पण्णत्ता लमणाउसो! हे श्रमण आयुष्म. न् ? ये एकोस द्वीप निवासी नुपम उत्सव करने की महिमा से विहीन होते है। अस्थि णं अंते एगोरुय दीवेणं दीवे णड पेच्छाइ का' हे भद. मत ! उस एकोलक द्वीप में मानटों के खेल होते है ? 'नदृपेच्छाइवा' नृत्य करने वालों के कृत्य को देखने के लिये उत्कंठित हुए मनुष्यों ઉદેશીને કહેવામા આવેલ મહત્સવનું નામ હદમહોત્સવ અને પર્વત મહોત્સવ छे. 'रुखरोवणमहाइवा चेइय महाइवा' वृक्षारा ४२वाने शीन सने यक्षाયતનને ઉદ્દેશીને કરવામાં આવેલા ઉત્સવનું નામ “વૃક્ષારોપણ મહત્સવ અને चैत्य भडात्र छे. 'थूम महाइवा' पीही विशेषनु नाम स्तू५ छे. भारतूपने ઉદેશીને કરવામાં આવેલા ઉત્સવનું નામ સ્તૂપમહોત્સવ છે. તે હે ભગવદ્ આ બધા જ મહોત્સવ એ એકરૂક દ્વીપમાં થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रमश्री गीतभस्वामीन ४ छ । 'णा इण२ समहे' हे गौतम ! म अथ समर्थ नथी. अर्थात् २मा छन्द्रा महात्सव। त्यो यता नथी. उभ 'ववगय महामहिमाणं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो' 8 श्रम मायुश्मन् ! मा એકરૂક દ્વીપમાં રહેવાવાળા મનુષ્ય ઉત્સવ કરવાનો મહિમા વગરના હોય છે. 'अस्थि णं भंते ! एगोरुय दीवे णं दीवे णडपेइच्छाइव' ७ मावन मे सी. ३४ बीमा शुनटाना मे थाय छ ? 'नट्टपच्छाइवा' नृत्य ४२वापाजामाना
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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