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________________ ६१० श्रीवामिगमसूत्रे " कमण्डलुः - तापसपानी यत्रो - धान्यविशेषः ११, स्तूप४ दामिनी५ कमण्डलु६ कलश ७ वापी८ स्वस्तिका ९ पताक१० यवो ११ मत्स्य १२ कूर्म १३ रथवर १४ मकर १५ शुकस्याला १६ ङ्कुशा १७ ष्टापदवीच १८ सुपविष्ठक१९ मयूर२० श्रीदामा २१ भिषेक २२ तोरण २३ मेदिनी२४ उदधिवर २५ भवन २६ गिरिवरा २७ दर्शलळित२८ गज२९ ऋपम ३० सिंह३१ चमरोत्तम३२ प्रशस्तद्वात्रिंशल्लक्षणधराः, तत्र छत्र लोकप्रसिद्धम् १, ध्वजः २, युगः३, स्तूपः स्तम्भः४, दामिनी-पुष्पमाली५ य पात्रम्६, कलशः७, वापीट स्वस्तिकः ९ पताका १० मत्स्यः१२ कूर्मां १३ इमौ प्रसिद्धौ रथवरः १४, मकरः १५ शुकस्थाल- शुक्रभोजनपात्रम् एवम्माङ्गळिकचिह्न विशेष: १६, अङ्कुशः १७, अष्टापदवीचिः- धूतफलकम् १८ सुप्रतिष्ठकं स्थापनकम् १९ मयूरः- प्रसिद्धः २० श्रीदामसुन्दर माळाकार आभरणविशेषः १२, अभिषेकः - कमलाभिषेकः हस्तिद्वय क्रियमाणाभिषेकयुक्तलक्ष्म्याकारचिह्नविशेषः २२, तोरणम् २३, मेदिनी - मेदिनीभृतराजा २४, उदधिः- समुद्रः २५, वरभवनं प्रासादः २६, गिरिवरः - प्रधानपर्वतः २७, आदर्श :- दर्पणम् २८, ललितगजो मनोज्ञदन्डी २९ भो गौः ३० सिंह:समणिडाला' इनका ललाट चतुरस्र-पूर्व पश्चिम दक्षिण उत्तर ऐसे चारों कोनों में घरायर प्रमाण वाला और समतल वाला होने से रमणीय होता है 'कोमुहरयणिश्वर विमलपडिवुन सम्प्रवयण' इनका सौम्य मुख कार्तिकी पूर्णमासी के चन्द्र की तरह विमल होता है और परिपूर्ण होना है 'छत्तन्नयउत्तिमंगा' छत्र के जैसे आकार वाला ऊपर से गोल इनका मस्तक होता है 'कुडिल लुसिणिद्ध दीहसिरपा' इनके मरतक के केश कुटिल- -वक्र होते हैं, सुस्निग्ध होते हैं और लम्बे होते हैं । 'छत्तज्झयजुमधूमदामिणि कमंडलुकल सचाविसोत्थियपडाग जव मच्छ कुम्भरहवरमगर सुकथ लअंकुमअट्ठायवीईसुपरटुक मयूर પશ્ચિમ દક્ષિણુ અને ઉત્તર એમ ચારે ખૂણુાએમાં પ્રમાણ સરના અને સમતલ वाजा होवाथी भलीय होय छे. 'कोमुइरयणिक र विमलप डिपुन्नसोग्मवयणा' તેનું' સૌમ્યમુખ કાતિ ઝી પૂર્ણ માસીના ચંદ્ર જેવું નિ`લ અને પરિપૂર્ણ હોય છે 'छत्तुन्नय उत्तम गा' छत्रना नेवा भारवाणु उपरथी गोण तेनुं भरत हाय छे. 'कुडिल सुसिणिद्ध दीह सिरया' तेना भाथाना है। टिस वांडा हाय है. सुस्निग्ध होय छे. माने सांगा होय छे. 'छत्तज्झयजूगथूमदामिणि कमंडलु कलस वावि मोत्थिय पडागजव मच्छ कुम्भ रहवर मगर सुकथाल अंकुस अट्ठावय बीई सुपईट्टक मयूर सिरिदामा भिसेय तोरण मेइणि उदधिवर भवणगिरिवर
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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