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________________ ६०८ जीवामिगम च लोचने यास तास्तथा, 'आणामिय चावरुइल किण्हन्भराइसठिय संगय भायय मुजात कसिण गिद्ध ममुया' आनामित चापरुचिर कृष्णभ्रराजी संस्थित संगतायत मुजात कृष्णस्निग्धभ्रवः तत्र आनामित ईपन्नामितो यश्चापो धनुस्तद्वद् वक्रतया रुचिरे-संस्थानभाषतो रमणीये कृष्णाभ्ररानिरिवकृष्णमेघपङ्क्तिरिव संस्थिते संगते यथोक्त प्रमाणोपएन्ने आयते-दीचे मुजाते मुनिप्पन्ने कृष्णे कालिमोपेते स्निग्ये स्निग्धच्छायोपेने भ्रवों यासा तास्तथा 'अल्लीणपमाण जुत्रसवणा' पाबीनप्रमाण युक्तश्रवणाः, आलीनौ मस्तकमित्तौ किञ्चि लग्नी ममाणयुक्तों-स्वप्रमाणोपेती श्रवणौ-कर्णी यासां तास्तथा, 'पीणमट्ट रमणिज्जगंडलेहा' पीनमृष्ट रमणीयगण्ड लेखा, तत्र पीना मांसला मृष्टा चिक्कणा अतएव रमणीया गण्डलेखा-कपोळपाली यासा तास्तथोक्ताः 'चउरंस पसत्य समणिडाला' चतुरस्रप्रशस्तसमललाटाः, चतुर्यु होती है चपटी नहीं होती ऋज्वी-सरल एवं तुङ्ग तोते की चोंच जैसी तीखी होती है 'लारदणक्ष कमलकुमुदकुवलयविमुक्क दल जिगर सरिल लक्खण अंकियकंतणयणा' इनके दोनों नेत्र सूर्य विकाशी शरद काल का कमल एवं चन्द्र विकाशी कुमुद कुवलयनील कमल इन से जुदा पड़ा हुआ जो पत्र समूह होता है उसके जैसी कुछ श्वेतता कुछ लालिमा कुछ सामना लिये हुए बीच में कृष्ण पुतलियों से अडिन होने से ये बाल कान्त सुन्दर लगते हैं 'पत्तल चालायय तंव लोयणाओ' फिर उनके नेत्र पक्ष्म पुट से युक्त होते हैं स्वभावतः चपल बने रहते हैं कर्ण तक लम्बे होते हैं और फोरों पर ईषत् रक्त होते हैं 'आणामिय चापलाल किण्हन्भर।इसंठियसंगत आयय सुजातक सिणिदभमुया' इनफी दोनों भी एं कुछ२ नम्रीभूत किये गये धनुष કહેતા વાંકી ચૂકી નહીં પણ સીધી હોય છે. અગ્રભાગમાં પ્રમાણુનુસાર કંઈક ઉંચી હોય છે. ચપટી હોતી નથી. ત્રાજવી સરલ અને તુંગ કહેતાં પોપટની यांय वाताभी डाय छे. 'सारद णव कमल कुमुदकुवलय विमुक्कदल जिगरसरिसलक्खण कियक तणयणा' तमना भन्ने नेत्री सूर्य विशी श२६ ઋતુનું કમળ અને ચંદ્ર વિક શી કુમુદ કુવલય નીલકમળ એ બન્નેમાંથી અલગ પડેલા એવા જે પત્રને સમૂહ હોય છે. તેના જેવી કંઈક વેતતા અને કંઈક લાલાશ અને કંઈક કાળાશવાળા અને વચમાં કાળી પુતળીયાથી અ કિત डापाथी त मत्यन्त सु१२ मा छे 'पत्तल चवलायतबलोयणाओं वजी तमाना નેત્રો પાંપવાળા હોય છે. સ્વભાવથી જ ચપલ હોય છે. કાન સુધી લાંબા जय छ भने १२५२ डाय छ, 'आणामियचाप रूइल किण्हम राइ संठिय संगत आयय सुजात कसिणणिद्धभमुया' तेमनी भन्ने भ्रम।
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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