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________________ ५८४ जीवामिगम धवले पत्रले-मयुक्ते घ अक्षिणी नेत्रे येषां वे स्था, 'आणामियचावकरलकिण्हमराह सं ठप संगय आयय सुजाय तणुकसिणनिद्धभूमया' आनामित चाप रुचिर कृष्णाभ्रराजिसंस्थित सगतायत सुजात तनु कृष्णस्निग्ध भ्रवः, तम आनामितम्-ईपदारोक्तिम् यद् धनुः तद्वद् रुचिरे संस्थान भावतो रमणीये, कृष्णाभ्रराजीव संस्थिते संगते-ययोक्तप्रमाणोपपन्ने आयते दीये सजातेमनिष्पन्ने तनू-तनुके इलक्षण परिमित्वारपतयात्मशत्वान कृष्णे-कालिमोपेते स्निग्धे भ्रुवो येषां ते तथा, 'अल्ली गप्पमाण जुत्तसवणा' आलीन प्रमाण युक्त श्रवणार, आलीनौ मस्तकमित्तौ किञ्चिल्लग्नौ प्रमाणयुक्तौ-स्वप्रमाणोपेतों श्रवणौ कणौ येषां ते तथा, विशालकर्णा इत्यर्थः, 'सुस्सवणा' अत एव सुश्रवणाः पीणमंसल कवोल देसमागा' पीन मांसलकपोलदेशमागाः, पीनः पुष्टौ मांसलः-- आणामियचावरूइल किसहभरायसंठिय संगय आयय सुजाय तणुक सिण निद्वभूप्रयाअल्लीणप्पमाणजुसतयणा' सूर्य किरणों से विकाशित श्वेत पुण्डरीक के जैसी इनको दोनों खिं होती है, तथा वे विकसितखिले हुए श्वेत कमल के जैसी-झोनों पर लाल बीच में काली और धवल और पक्ष्म पुट वाली होती है इनकी भौएँ ईषत्-आरोपित धनुष के समान वक्र होनी है, रूचिर-संस्थान की अपेक्षा रमणीय होती है, कृष्ण अभ्रपंक्ति के जैसी काली होती हैं अपने प्रमाण के अनुकूल सघन होती हैं, दीर्घ होती है, सुनिष्पन्न जन्म रहित होती है, पतली होती हैं काली और स्निग्ध होती हैं। इनके कान नम्नक के भाग तक कुछ २ लगे हुए होते हैं और अपने २ प्रमाण के अनुरूप होते हैं। अर्थात् ये विशाल कानों वाले होते हैं। 'मुस्सत्रणा, पीणमंपलकवोलदेतभागा, मठिय सगयआयय सुजाय तणुकसिण द्विभूमया अल्लोणप्पमाण जुत्तसवणा' સૂર્યના કિરણેથી ખીલેલા શ્વેત કમળના જેવી તેઓની બન્ને આખો હોય છે તથા તેઓ ખીલેલા શ્વેત કમળોના જેવી એટલે કે ખૂનું પરલાલ વચમાં કાળી, અને ઘોળી અને પાંપણે વાળી હોય છે. તેમની ભ્રમરે કંઈક ચઢાવેલા ધનુષના જેવી વાંકી હોય છે. રૂચિર એટલે કે સંસ્થાનની અપેક્ષાથી મણીય હોય છે કૃષ્ણમેઘની પંક્તિ જેવી કાળી હોય છે, પિતાના પ્રમાણને અનુકૂલ સઘન હોય છે. દીર્ઘ લાંબી હોય છે. સુનિષ્પન્ન અર્થાત્ જન્મદેષ વિનાની હોય છે. પાતળી હોય છે કાળી અને રિન ચિકણી હોય છે, તેમના કાને માથાના ભાગ સુધી કંઈક કંઈક ચેટેલા હોય છે. અને પોત પોતાના પ્રમાણાનું ३५ डाय छे. अर्थात् त। विशाण अनोवाडायटे, 'सुस्सवणा, पीण मंसलकवोलदेसभागा, अविरुग्गयबालचंद ठिय पसत्थवित्थिण्ण समणिडाला
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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