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________________ ५३८ श्रीवाभिगम न्तीति भावः । 'अन्नमन्न- समोगावाहि लेस्साहि' अन्योऽन्य समचगादाभिर्लेश्याभिः सहितास्ते वृक्षाः 'साए पभाए सपएसे सम्बओ समंता ओमासंति' ते वृक्षाः स्वकीयया प्रभया स्मदेशान् सर्वतः सर्वासु दिक्षु समन्ताद= सामस्त्येन अवमासन्ते 'उज्जोदेति पभासे 'ति' उद्योतन्ते प्रभासन्ते 'कुसचिकुस वि जाव चिह्नंति' कुशविकुश विशुद्ध वृक्षमूला यावत् मूलकन्दादिमन्तः प्रासदीया दर्शनीया अभि रूपाः पतिरूपस्तिष्ठन्तीति, व्याख्यानं पूर्ववदेव ज्ञातव्यमिति ५ || ० ||३५|| मूळम् - एगोरुय दीवे तत्थ २ बहवे चित्तंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से पेच्छाघरे विचित्ते रम्मे वरकुसुमदाममालुजले भासंत मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिए विरलि विचित्त महसिरिदाममहसिरि समुदयपगन्भे गंथिम वेढिम पूरिम संघाइमेण सल्लेण छेयसिप्पियं विभागरइएण सव्वओ वेव समवद्धे पविरललं बंत विप्पइट्ठेहिं पंचवण्णेहिं कुसुमदामेहिं सोभमाणेहिं सोममाणे वणमालकयगाए चेव दिप्पमाणे तहेव विगया विदुमगणा अणेगवहुविविह वीससा परिणयाए मलविहीए उपवेया कुपत्रिकुसविसुद्ध जाव चिति६ । एगोरुय स्थान पर अचल रहते हैं 'अन मन्न समोगाढाहि लेस्साहि साए पभाए सपदे से सभी क्षमता ओभासेति' एक दूसरे में समाये हुए अपने प्रकाश द्वारा ये अपने प्रदेश में रहे हुए पदार्थो को सब दिशाओं में सम्पूर्ण रूप से प्रकाशित करते हैं 'कुल विकुस जाय चिट्ठति' इन पदों का व्याख्यान पूर्व के ही जैसा है। तात्पर्य यही है कि जैसे ये प्रकाश शील पदार्थ विविध प्रकार के हैं उसी प्रकार से ज्योतिषिक नामक कल्पवृक्ष भी अनेक प्रकार के हैं। सूत्र ३५|| प्रभा मा पशु पोताना स्थान पर अयस रहे छे. 'अन्नमन्नसमोगाढाहि लेस्साहि खाए पभाए सपदेसे सव्वओ समता ओभासेति' थे श्रीलमां સમાવેલા પેાતાના પ્રકાશ દ્વારા આ પેાતાના પ્રદેશમાં રહેલા પદ્મ ચેનેિ બધીજ तरस्थी अधी हिशासभां संपूर्ण पद्याथी प्राशित उरे छे. 'इस विकुसजाव चिट्ठति' मा होना अर्थ पहेला उद्या प्रभावेन हे अहेवानु' तात्पर्य છે કે જેમ આ પ્રકાશશીલ પદાર્થ અનેક પ્રકારના ઢાય છે, એજ પ્રમાણે આ નૈતિષ્ઠ નામના કલ્પ વૃક્ષ પણ અનેક પ્રકારના છે. સૂ. ૩પપ્પા
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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