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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ स्.३२ सम्यग्मिथ्याक्रिययोरेकदानिषेधः ४८१ वानाह-'हंता' इत्यादि, 'हंता जाणइ पासई हन्त जानाति पश्यति सामान्यविशे पास्यामिति । अत्र यावत्पदेन अविशुद्धले श्यः खलु भदन्त ! अनगारोऽसमवहतेन भास्मना अविशुद्धलेश्यं देवं देवीमनगारंजानाति पश्यति ? हन्त गौतम ! जानाति पश्यति विशुद्रलेश्याकतया यथावस्थित वातु विषयक ज्ञानदर्शनसझावात,तदुक्तम् 'शोभनमशोभनं वा वस्तु यथावद्विशुद्धलेश्यो जानातीति । एवं चत्वारोऽपि मध्यगा आलापका द्रष्टव्या ज्ञातव्याश्चेति ॥०३१॥ तदेवं यतोऽविशुद्धलेश्यो न जानाति न पश्यति विशुद्धलेश्यस्तु जानाति पश्यति ततः सम्यग मिथ्याक्रिययोरेकदा निषेधमभिदिधित्सुराह-'अण्ण उस्थियाणं भंते !' इत्यादि। मूलम्-अण्णउस्थियाणं भंते ! एवमाइक्खंति एवं भासेंति एवं पण्णवेति एवं परूवति एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ, तं जहा-संमत्त किरियं च मिच्छत्तकिरियं घ, जं समयं समत्तकिरियं पकरेइ, तं समयं सिच्छत्तकिरियं पकरेइ, जं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेइ तं समयं समत्तकिरियं पकरेइ,संमत्तकिरियापकरणयाए मिच्छत्तकिरियं पकरेइ मिच्छत्तभदन्त ! विशुद्ध लेग वाला अनगार जो कि समवहत असमवहत अवस्थावाला है क्या वह स्वयं के द्वारा विशुद्ध लेश्या वाले देव को, देवी को तथा अनगार को क्या जानता देखता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री ने कहा है कि हे गौतम ! 'हंता जाण: पासा' हां ऐसा वह अनगार उस देव को उस देवी को तथा ऐसे उस अनगार को जानता और देखता है, यहां यावत् बीच के पंच आलापक गृहीत हुए हैं । लेश्या की विशुद्धि से ज्ञान में यथार्थ दर्शकतो आती है-इस विषय में ऐसा कहा गया है'शोभनमशोभनंवावस्तु यथावद्विशुद्ध लेश्यो जानाति ॥२-३०॥ અણગાર કે જે સમવહત અને અસમવહત અવસ્થાવાળે છે, તે વિશુદ્ધ લેશ્યા વાળા દેવને દેવીને અથવા અનગારને શું જાણે છે કે દેખે છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रमुश्री गौतभस्वामी ४ छे 23 गौतम ! हता जोणइ पासइ' હા એ તે અણગાર એ દેવને અને દેવીને તથા એવા અનગારને જાણે છે. અને દેખે છે. અહિયાં યાવત શબ્દથી વચલા પાંચ આલાપ ગ્રહણ કરાયા છે. લેશ્યાની વિશદ્ધિથી જ્ઞાનમાં યથાર્થ દર્શકતા આવે છે. તે સંબંધમાં એવું इ छ । शोभनमशोभन' वा वस्तु यथावद्विशुद्धलेश्यो जानाति' ।सू. ३१॥ जी० ६१
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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