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________________ 1 प्रद्योतिका ठीका प्र.३ उ. ३ सू. ३० सभेदपृथिव्याः स्थित्यादिनिरूपणम् ४५७ पृथिवीनां स्थितिर्भवतीति । 'उक्को सेणं एवं बाससदस्से' उत्कर्षेणैकं वर्षसहस्रम् वर्ष सहस्रपर्यन्ता उत्कृष्टा स्थिति श्लक्ष्ण पृथिवीनामिति । 'सुद्धपुढची पुच्छा' शुद्ध पृथिवीनां पृच्छा, हे भदन्त । शुद्ध पृथिवीनां शुद्ध पृथित्रीजीवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता इति प्रश्न:, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा ' गौतम ! 'जहनेणं अंदोमुहुतं' जघन्येन न्तर्मुहूर्त यावत् स्थितिर्भवति, 'उक्कोसे णं बारसवासमहलाई उम्कर्षेण द्वादशवर्षसहस्राणि यावत् स्थितिर्भवति शुद्ध पृथिवीनामिति । 'वालुया पुढदीणं पुच्छा' बालुका पृथिवीनां पृच्छा बालकापृथिवीनां वालुकापृथिवी जीवानां कियन्तं कालं स्थितिर्भवतीति प्रश्न:, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! ' जहन्नेणं अंतो मुहुर्त्त' जघन्येन अन्तर्मुह यावत् स्थितिर्भवति, 'उकोसेणं चोसवामसहस्सं' उत्कर्षेण चतुर्दशवर्षसहस्राणि यावत्स्थितिर्भवतीति । 'मणोसिला पुढचीणं पुच्छा की स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त की कही गई है और उत्कृष्ट से वह एक हजार वर्ष की कही गई है 'सुद्ध पुढवी र्णं पुच्छा' हे भदन्त ! शुद्ध पृथिवी की स्थिति कितने काल की कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयला ! जहनेणं अंनो मुहुत्तं' हे गौतम! शुद्ध पृथिवी की स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त की कही गई और 'उक्को सेर्ण वारसवासमहस्वाई' उत्कृष्ट से वह बारह हजार वर्ष की कही गई है 'बालुया पुढरीणं पुच्छ । 'हे भान्त ! बालुका पृथिवी के जीवों की स्थिति कितने फाल की कही गई है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-गोयमा ! जहनेणं अंतो मुत्त' हे गौतम! बालुका पृथिवी के जीवों की स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से 'चोहसवास सहस्सा हूं' c. પૃથ્વીની સ્થિતિ જ ઘન્યથી એક અંતમુહૂત'ની કહી છે અને ઉત્કૃષ્ટથી તે थोड डलर वर्षानी वामां भावी हे 'सुद्ध पुढवीण पुच्छा' हे भगवन શુદ્ધ પૃથ્વીની સ્થિતિ કેટલા કાળની કહેવામાં આવી છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં अनुश्री छे 'गोयमा ! जहणेणं अतोमुहुत्तं' हे गौतम । शुद्ध पृथ्वीनी स्थिति धन्यथी मे अतर्मुहूर्तनी उही छे भने 'उक्कोसेणं' वारसवास स्रइरसाई' उत्सृष्टथी णार उमर वर्षानी हडेल छे. 'चालुया पुढवीण' पुच्छा' હે ભગવન્ વલુકા પ્રભા પૃથ્વીના જવાની સ્થિતિ કેટલા કાળની કહેવામાં भावी छे ? या प्रश्नमा उत्तरमां प्रभुश्री हे 'गोयमा ! जणेणं अतोमुहुत्तं' हे गौतम! वासुप्रला पृथ्वीना छोनी स्थिति धन्यथा खे संत भुडूनी ने उत्सृष्टथी ''चे 'हसवाससहस्वाई' यौ डलर वर्षनी आहेस है, जी० ५०
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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