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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ १.२६ पक्षीणां लेश्यादिनिरूपणम् सहस्राणि भवन्तीति। 'च उपायथलयरपंचिदियतिरिक्खनोछियाणं पुन्छ।' चतुष्पद स्थलचरपञ्चेन्द्रियनियज्योनिकानां अदन्त ! कतिविधो योनिसंग्रह प्रज्ञप्त इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' हे गौलम ! 'दुविहे पन्ना विविधो-द्वि प्रकारको योनिसंग्रहः प्रज्ञप्तः-कथित इति, 'तं जहा सधथा-'जराउवा संच्छिमाय' जरायुजाः संमुछिमाश्च, अत्र ये अण्डजव्यतिरिक्ता धर्मव्युत्क्रान्तिकारते सर्वे जरायुजा इति । ___ अत्र जरायुजपोतजयो रूत्पत्तिस्थानस्य समानवाल जरायुजानां बाहल्याच नाम्मा एकस्य गृहीतः पोतमोऽत्रान्तर्गत इति न विवक्षिा इति । 'से कितं जराउया, दस लाख है। 'चउप्पयलपर पबिंदिय तिरिक्खजोणियाण पुच्छर' हे भदन्त ! चतुश्श ल चार पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों का योनि संग्रह कितने प्रकार का है? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोषमा! विहे पन्नते' हे गौतम! हलका योनिसंग्रह दो प्रकार का कहा गया है 'तं जहा' जैसे'जराउया य समुच्छिमाय' जरायुज और संमूच्छिन यहां अण्डज से भिन्न जितने भी गर्भज हैं वे या तो जरायुज होते हैं या पोलज होते हैं। चतुष्पदस्थलचर पञ्चन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव अण्डज नही होते है खेचर पञ्चेन्द्रिय तिम्पोनिक जीव ही अण्डज होते हैं। इसलिये चतुष्प दस्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च जीव या तो गर्मज होगे या पोतज होंगे या संमूच्छिम होंगे पर यहाँ जो दो प्रकार का योनि संग्रह कहा गया है वह जरायुज और पोतजों का उत्पत्ति स्थान समान होने से तथा जरायुजों की वाहल्यता को लेकर एक जरायुज नाम का भेद ही ग्रहण इसी सामनी छे. 'चउप्पयथलयर पंचि दिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा' હે ભગવન્ ચતુષ્પદ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિનિકોને નિ સંગ્રહ કેટલા પ્રકાર ना छ ? २मा प्रश्न उत्तरमा प्रमुछे 'गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते' गीतमा तेमानो योनिस में ५४.२न। म मावेत . 'त' जहा' भ 'जराउयाय समच्छिमाय' नरायु मने स भूमि मिडियां 247 थी । જેટલા ગર્ભ જ જીવે છે, તેઓ યાતા જરાયુજ હોય છે, અથવા પિતજ હોય છે. ચતુષ્પદ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યનિક જી અંડજ હોતા નથી. ખેચર પંચેન્દ્રિય તિર્યનિક જીવેજ અંડજ હોય છે. તેથી ચતુષ્પદ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિયંગેનિક જી ગર્ભજ હોય છે, અથવા પિતજ હોય . કે સંમૂરિષ્ઠમ હોય છે. પરંતુ અહિંયાં જે બે પ્રકારને નિસંગ્રહ કહેલ છે, તે જરાયુજ અને પિતાના ઉત્પત્તિ સ્થાનની સરખા હેવાથી તથા જરાયુજેના બહુલપણને લઈને એક જરાયુજ નામને ભેદ જ ગ્રહણ કરેલ
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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