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________________ जीवामिगमस्से २०० 'गोयमा' हे गौतम ! 'अयणं जंबुद्दीवे दीवे' अयं खलु यत्र वयं संस्थिता जम्बू द्वीपो द्वीपः, अष्ट शेजनोच्छूित या रत्नमय्या जम्ब्या-जम्बू-दर्शनया उपलक्षितो द्वीपो जम्बूद्वीपः 'सन्दीवसमुदाणं' सर्वद्वीपसमुद्राणां धातकीखण्डलवणा दीनाम् 'सब्वभंतरए' सर्वाभ्यन्तरः सर्वेषामादिभूतः 'सव्वखुड्डाए' सर्वक्षुल्लकः सर्वेभ्यो द्वीपसमुद्रेभ्यः क्षुल्लक:-हस्व इति सर्वक्षुल्लकः तथाहि-सर्वे लवणादयः समुद्राः सर्वे धातकोखण्डादयोद्वीपाः अस्माज्जम्बूद्वीपादारभ्य प्रवचनोकतेन क्रमेण द्विगुणा द्विगुणायामविष्कम्मपरिधि मन्तस्ततोऽयं जरबृढीपः शेपसर्वद्वीपसमुद्रापेक्षया लघुर्भवतीति । तथा-'नटे' वृत्तः वृत्ताकारः, यतः 'तेल्ला पूर्वसंठाणसंठिए' तैलापूपसंस्थानसंस्थितः, तैलेन एकाऽपूपरतेलापूपः तेटेन परिपक्वोऽपूपः मायः परिपूर्णवृत्तो भवति न तथा घृतेन पक्व इति तेळविशेषणम् तेलापूपबत् संस्थानमिति तैलापूपसंस्थानम्, तेन तैलापूरसंस्थानेन संस्थित इति तैलापूप संस्थानसंस्थितः। तथा-'बट्टे' वृत्तो वृत्ताकारः, यतः 'रहचक्कबालसंठाणसंठिए' रथचक्रवालसंस्थानसस्थित:-रथचक्रसदृश वृत्ताकार तथा 'वट्टे' वृत्तः यत:-'पुक्खरफणिया संठाणसठिए' पुष्करकर्णिका संस्थानसंस्थिता कमलइस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं-'गोयमा ! अघणं जम्बूद्दीवे दीवे' हे गौतम ! यह जम्बूद्वीप नाका जो द्वीप है कि जहां हम लोग रहते है और जो 'सव्वदीवसमुदाणं सवाभतरए' समस्त द्वीप और ममुद्रों के मध्य में वर्तमान सत्र से प्रथम है 'सन खुड्डाए' तथा सब द्वीप समुद्रों से जो छोटा है 'चट्टे' गोलाकार है इसीलिये 'तेल्लापूर्वसंटाण संठिए' जिमका संस्थान तैल, पके हुए पुरे के जैसा है अथवा यह ऐसा 'चट्टे' गोल है जैसा कि 'रहचकवालसं ठाणसटिए' रथ का पहिया गोल होता है। अथवा यह ऐस्ता 'वत्त' गोल है 'पुक्खर कनिया संठाणसं ठिए' कि जैसा पुष्कर-कमल कर्णिका के समान आकर ___५भावा। तेन उत्तर भापता महावी२५ छ ?-गोयमा ! अयणं जंबुद्दीवे दीवे' 3 गौतम! द्वीप नामना २ मा दी५ छ, है च्यां भा५ २डी छीमे सन २ द्वीप 'सव्वदीवस मुद्दाणं सव्वळ तरए' सघाची मने सभुदीनी मध्यमा सौथी या २२स छे. 'सव्वखुड्डाए' तथा मा ५ समुद्रात २ नाना छे. 'वढे' गाया।२ . तथा 'तेल्लापूवसठाणसठिए' रेनु सस्थान तेलमा ५ian । अर्थात् भातवाना ने छे अथवा त ते मे 'वढे' नाम ४-'रहचक्क वालस ठाणसठिए' २थर्नु पैड २ ५ सय है, तवा गारवाणा साय छे. अथवा ते मे 'वर्त्त हेतi छ है-'पुक्खरकणियास ठाण
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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