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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ २.१० प्रतिपृथिव्याः उपर्यधस्तनचरमान्तयोरन्तरम् १९ 'अबाहाय' अबाधया अन्तर प्रज्ञप्तम् घनोदधेशिविसहख योजनप्रमाणत्वात् । 'घणवायस्स असंखेज्जाई जोयणसयसहस्साई पन्नत्ते' शर्करापभोपरितनात् घरमान्तात् घनवातस्याधस्तन श्चमान्तः असंख्येययोजनशतसहस्रमन्तरं प्रज्ञप्तम् । 'एवं जाव उवासंतररस चि' एवं यथा-घनवातस्यासंख्येययोजनशतसहस्रमन्तर' तथैव शर्कराममाया उपरितनाश्वरमान्तात् तनुवावस्थावकाशान्तरस्य चाधस्तन परमान्तोऽसंख्येययोजनशतसहस्रमन्तर भवतीति ज्ञातव्यम् । कियत्पृथिवी पर्यन्तमित्याह-'जाव' इत्यादि । 'जाव अहे सत्तमाए' यावदधः सप्तम्यां अधः सप्तमी पृथिव्याः अन्तरपकरण पर्यन्तमित्यर्थः । ननु एतत्सर्व शर्कराममा घणोदहिस्स हेटिल्ले चरिमंते बावण्णुत्तरं जोधणसयसहस्सं' हे गौतम | शर्कराप्रभा पृथिवी के उपरितन चस्मान्त से घनोदधि का जो अधस्तन घरमान्त है वह एक लाख पावन हजार योजन के अन्तर से है-अर्थात् वहां से यहां तक एक लाख पावन हजार योजन का अन्तर है क्योंकि घनोदधि का प्रमाण बीस हजार योजन का होता है 'घणवायस्स असंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई तथा-रत्नप्रभा के उपरितन घरमान्त तक असंख्यात लाख योजन का अन्तर है 'एवं जाव उवासंतरस्स वि' इसी तरह से शर्कराप्रभा पृथिवी के उपरितन घरमान्त से लेकर तनुवात वलय के अधस्तन चरमान्त तक और अव. काशान्तर के अधस्तन चरमान्न तक असंख्यात लाख योजन का अन्त. राल कहना चाहिये कितनी पृथिवी तक कहना चाहिये? इस पर कहते है-'जाव अहे सत्तमाए' जिस प्रकार शर्कगप्रभा के विषय में अन्तर घणादहिस्स हेट्रिल्ले चरिम ते बावण्णुत्तरं जोयणसयसहस्स” ले गीतम! શકરપ્રભા પૃથ્વીના ઉપરના ચરમાંતથી ઘોદવિ પૃથ્વીને જે નીચે ચરમાંત છે, તે એક લાખ બાવન હજાર જનની અંતરે છે અર્થાત્ ત્યાંથી અહિંયા સુધીમાં એક લાખ બાવન હજાર જનનું અંતર છે. કેમકે ઘન વિનું प्रमाण वास २० M२ ननु . 'घणवायत्स असखेज्जाई जोयणसयसहस्साई' तथा २त्नभाना 6५२॥ यमान्त सुधीमा असभ्यात ani या ननु मत२ छे. 'एव जाव उवासंतरस्स वि' का प्रमाणे शराला પૃથ્વીના ઉપરના ચરમાન્સથી લઈને તનુવાતવલયના નીચેના ચરમાત સુધી અને અવકાશાન્તરની નીચેના ચરમત સુધી અસંખ્યાત લાખ જનનું અંતરાલ કહેવું જોઈએ કેટલી પૃથ્વી સુધી તે કહેવું જોઈએ તે બાબતમાં કહે છે કે 'जाव अहे सत्तमाए' २ प्रभारी शमा पृथ्वीना समयमा तनु ५४२६ जी० १७
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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