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________________ जीवाभिगमन सामस्त्येन वेष्टयित्वा खल्लु 'चिट्ठई' तिष्ठति-वर्तते तेन कारणेन वलयाकारसंस्थानसंस्थितो घनोदधिवलय इति ज्ञायते । ‘एवं जाव अहे सत्तमाए पुढ पीए घनोदधिवळए' एवं यावदधः सप्तम्याः पृथिव्याः घनोदधिरलया, यथा रत्नपमा पृथिव्याः घनोदधिवलयो वलयाकारसंस्थानसंस्थितः तथैव शर्करामभा वालका प्रभा पङ्कप्रभा धूमप्रभा तमःममा तमस्तमःममा पृथिवीनामपि घनोदधिक्लयोदलयाकारसंस्थानसंस्थित एव ज्ञातव्यः, 'नवरं अरणप्पणं पुढविं संपरिक्खिचाणं चिट्ठई' नवरमिति विशेषत्वयम्-यद् घनोदधिवलयः आत्मीयात्मीयां शर्कराधमातोऽधः सप्तमी पर्यन्तं स्वस्त्र सम्बन्धिनी पृथिवीं संपरिक्षिप्य 'खलु अच्छी तरह से परिवेष्टित करके ठहरा हुआ है, इस कारण यह ज्ञात होता है कि यह घनोदधि वलय वलय के आकार हा गोल है एवं जाव अहे सतमाए पुढवाए घनोदहिवलए' रत्नप्रभा पृथिवी का घनोदधि वलय जिस प्रकार ले दलयाकार के संस्थान से संस्थित कहा गया है उसी तरह ले शर्करा प्रभा पृथिवी का पङ्कप्रभा पृथिवी का, धूम प्रभा पृथिवी का, तमः प्रभा पृथिवी का, और तमस्तमः प्रभा सातवीं पृथिवी का घनोदधि बलय भी वलयाकार के संस्थान से संस्थित कहा गया है ऐसा जानना चाहिये 'नवरं अपणप्पणं पुढवि संपरिक्खित्ताण चिट्ठ' परन्तु इस कथन में ऐसी विशेषता जाननी चाहिये कि घनोदधि अपनी अपनी पृथिवी को घेरे हुए है जिस प्रकार से रत्नप्रभा पृथिवी का बनोदधिषलय रत्न प्रमा पृथिवी के चारों ओर से हुए हैं उसी प्रकार ले शर्करा पृथिवी का धनोदधि वलय वाधिवय यारे हिशाममा मन शामामा सपरक्खित्ता' सारी शत વીટળાઈને રહેલ છે, તે કારણથી એમ જણાય છે કે આ ઘને દધિ વલય मायाना मा२ । गण थे, ‘एवं जाव अहे सत्तमाए पुढवीए घणोदही वलए' २नमा पृथ्वीन घनधि पसय म मायाना આકાર જેવા સંસ્થાનથી રહેલ કહ્યો છે, એ જ પ્રમાણે શકરપ્રભા પૃથ્વીને, ધૂમપ્રભા પૃથ્વીને, તમપ્રભા પૃથ્વીને, અને તમસ્તમપ્રભા પૃત્રીને ઘને દધિવલય પણ બયાના આકર જેવા સંસ્થાનથી ચુકત કહેલ છે. તેમ सभा'. 'नवर' अप्पणप्पण' पुढवि स परिक्खित्ताण चिदई' ५२ तु मा ४थनमा એવું વિશેષ પણું સમજવું જોઈએ કે તે બધા વિનોદધિ પિતપોતાની પૃથ્વીને ઘેરીને રહેલા છે જેમ રત્નપ્રસા પૃથ્વીને ઘનેદધિ વલય રત્નપ્રભા પૃથ્વીને ચારે તરફથી ઘેરીને રહેલ છે, એજ પ્રમાણે શકરપ્રભા પૃથ્વીને ઘનેદધિ
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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