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________________ ५९२ जीवाभिगमसूत्रे यानाम 'कयरे कयरेहितो' कतरे कतरेभ्य. एतेषां मध्ये केपामपेक्षया के इत्यर्थः । 'अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा' अल्पा वा वहुका वा तुल्या वा विशेषाधिकावेति मामान्यन बीपुरुपनपुंसकानामल्पबहुत्वादिविषयक प्रथम. प्रश्नः, भगवानाह--'गोयमा' इत्यादि "गोयमा" हे गौतम ! “सव्वत्थोवा पुरिसा' सर्वस्तोकाः पुरुपाः पुरुषाः सर्वेभ्य. तीनपुंसकेभ्योऽन्पा भवन्तीति । 'इत्थीओ संखेज्जगुणा' पुरुषापेक्षया स्त्रियः सख्यातगुणा अधिका भवन्तीति ‘ण पुंसगा अणंतगुणा' स्त्र्यपेक्षयाऽपि नपुंसका अनन्तगुणा अधिका भवन्तीति वनस्पतिमपेत्य नपुंसकानामनन्तगुणत्वमिति प्रथममल्पबहुत्वम् ।१। टीकार्थ-- गौतम ने प्रभु से ऐसा पछा है-हे भदन्त ! इन सामान्य से 'इत्थीणं' स्त्रियो के पुरिमाणं' सामान्य पुरुप जातियो के 'णपुंसगाण य' एवं सामान्य से नपुसकों के बीच में 'कयरे कयरेहितो' कौन किन से 'अप्पा वा' अल्प है । कौन किन से 'वहुया वा' अधिक हैं ? कौन किन के 'तुल्ला वा' बराबर है और कौन किन से 'विसेसाहिया वा' विशेषाधिक है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते है-'गोयमा' हे गौतम ,सव्वत्थोवा पुरिसा' सबसे कम पुरुप है-अर्थात् स्त्रियो और नपुसको की अपेक्षा पुरुप बहुत थोडे है । इनकी अपेक्षा'इन्धीओ संखेज्जगुणा' पुरुषो की अपेक्षा स्त्रिया सख्यात गुणित अधिक है 'णपुंसगा अणंत गुणा' स्त्रियों की अपेक्षा नपुसक अनन्त गुणित अधिक है । वनस्पति की अपेक्षा से इनका अनन्तगुणत्व कहा गया है. यह प्रथम अल्प बहुत्व है। द्वितीय अल्पबहुत्व इस प्रकार से है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है - 'एएसिणं ટીકાથે–ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછયું છે કે હે ભગવન સામાન્યપણાથી " इत्थीण " श्रीयामा "पुरिसाणं" सामान्य पु३५ जतियोमा “णपुसगाण य" मने सामान्य यी नधु सभा “कयरे कयरेहितो" हानाथी "अप्पा वा" २८५ छ १ है। अनाया "यडया वा" पधारे छे ? हानी "तुल्ला वा" तुक्ष्य छ १ अन आएर हानाथा "विसेसारिया वा" विषय है ? गौतम स्वाभाना मानना उत्तरमा प्रमुडे -"गोयमा" गौतम "सव्वत्थोवा पुरिमा" भौथी छ। ५३५ो छ मातरियो भने नपुस ४२ता ५३। धारा मछ। छे. "इन्थीयो संरोजगुणा" पुरुषी ४२ता लियो यातगणी या३ छ, “णपुंसगा अणतगुणा" પ્રિયે કરતા નyકો અન તગણું વધારે છે વનસ્પતિની અપેક્ષાથી તેમનું અને તગણ પણું કાનું છેઆ રીતે આ પહેલું અ૯૫ બહુપણુ કહ્યુ છે. ૧ બીજી બ૯૫ બહુપણું આ પ્રમાણે છે–આમા ગીતમ સ્વામીએ પ્રભુ ને એવું પૂછયું છે 1- 'पसि ण भंते ! तिरिमन जोणिस्थीणं निरिक्स जोणियपुरिसाणं तिरिपुंक्खजोणिय ण
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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