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औपपातिकसने पत्त-पल्लव-कोमल-उज्जल-चलंत-किसलय-सुकुमाल-पवाल-सोहियवरंकुर-ग्गसिहरा णिच्चं कुसुमिया णिचं मऊरिया णिचं पलवियों न्धकार-गम्भोर-दर्शनीया -नवेन हरितेन भासमानो-दीप्यमानो य परमार -पत्रसमूह , तेन अन्धकारा =सान्धकारा , अतएव-गम्भीरदर्शनीया-गम्भीरम्-'इदमीदृग्' इति विवेत्तुमशक्य यथा स्यात्तथा दृश्यन्ते इति गम्भीरदर्शनीया । 'उवणिग्गय-णव-तरुण-पत्त-पल्लव-कोमलउज्जल-चलत-किसलय-सुकुमाल-पवाल-सोहिय-घरकुर-ग्गसिहरा' उपनिर्गत-नवतरुणपत्र-पल्लव-कोमलो-ज्वल-चलकिसलय-सुकुमार - प्रवाल - गोमित - वराऽङ्कुराऽप्रशिखरातत्र-उपनिर्गतानि-सद्य प्रकटितानि, नवतरुणानि-नवीनागततरुणतासम्पन्नानि पत्रपल्लगानिपत्ररूपाणि गुच्छरूपाणि तै, तथा कोमलोज्ज्वलै -मृदुनिर्मलै , चलद्धि , ' फिसलय - सद्योजातै पत्रविशेषै सुकुमारप्रवाल - कोमलपल्लवै , शोभितवराऽमुराणि=सुन्दराङ्कुर-- युक्तानि अग्रशिखराणि-उपरितनभागा येषा ते तथा । अत्र विशेषणे अङ्कुरप्रवालपल्लाफिसलयपत्राणि स्वल्पबहुबहुतरादिकालकृतावस्थाभेदाद्भिन्नानीति । भाव । 'णिच कुसुमिया' नित्य कुसुमिता -सदा सर्वर्तुसजातकुसुमोपेता -न तु सतुभेदमल-उज्जल-चलत-किसलय सुकुमाल-पवाल-सोहिय-वरकुर-ग्गसिहरा) इनके जो पत्र एव पल्लव थे वे नवीन निकलने की वजह से नवीनतरुणता-सपन्न थे, कुम्हलाये या मुझये हुए नहीं थे। इन पर जो किसलयकोंपले थीं वे कोमल थीं उज्जल थीं तथा मृदु पवन के झोके से हिलती रहती थीं । इनमे जो प्रवाल थे वे-बहुत, ही कोमल थे । इस प्रकार पत्रों से, पल्लवों से, कोंपलों से और प्रवालों से इनके उत्तम अकुर शोभित हो रहे थे, इन अकुरों से इन वृक्षों का अग्रभाग लहलहा रहा था । [णिञ्च कुसुमिया ] ये वृक्ष सदा सर्व ऋतुओं के पुष्पों से फूले रहते थे ।
भशय तु (उपणिग्गय ण-तरुण पत्त-पल्लव-कोमल उज्जल-चलत-किसलय-सुकुमालपवाल-सोहिय-चरकुर-गसिहरा) मेना पान तभ०४ ५८स तात नवीन ઉગવાના કારણથી નવીન તરૂણતા- પન્ન હતા કરમાઈ ગયેલા કે ચીમડાઈ ગયેલા રહેતા તેના પર જે કિસલય-કુપળે હતા તે કોમળ હતા, ઉજ્જવળ હતા તથા મદ પવનની લહેરીથી હલતા હતા તેમાં જે પ્રવાલ હતા તે બહુ જ કોમળ હતા આ પ્રકારે પત્રથી, પલથી, કુપળાથી અને પ્રવાલાથી તેમના ઉત્તમ અકુરે શેભી રહેતા હતા એ અ કુરાથી એ વૃક્ષોને मागणना लाग सुशोलित तो (णिन्च कुसुमिया) से वृक्षो मेया सर्व अतमान प्याथी मिली २९सा रहेता उता (णिच्च मऊरिया) सही से