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युधषिणी-टी स ६ईसिमित्यादियुक्तमाधुर्विषयेभगवद्गीतमयो.मयाद ६६१ पाउर्णित्ता आवाहे उप्पण्णे वा अणुप्पपणे वा भत्तं पञ्चक्खंति । ते वहुई भत्ताई अणसणाए छेदेति, छेदित्ता जस्सहाए कीरइ नग्गभावे जाव तमहमाराहिता चरमेहि ऊसासणीसासेहि प्रादुर्भवति, ते बहद वासाद' तेऽनगारा भगवतो वहनि वर्षागि 'छउमत्यपरियाय पाउणति उदास्यपर्याय पालयन्ति-उमस्थावस्था पालयन्ति, 'पाउणित्ता' पालयिया 'आगहे ' आवाधाया रोगादियाधायाम 'उप्पण्णे वा अणुप्पण्णे वा' उत्प. नाया वा अनुपनाया या सया भत्त पचरखति' भक्तं प्रत्यारयान्ति, 'ते बहूई भत्ताइ अगसणाए उति' ते वहनि भक्तानि अनशनया छिन्दन्ति, 'छेदित्ता' डिवा 'जस्सद्वाए ' यस्मै अर्थाय 'कीरद नग्गभावे' क्रियते नग्नभाव -अकिञ्चन्य क्रियते, 'जार तमट्ठमाराहिता' यावत् तमर्थमाराध्य, ' चरमेहिं ऊसासणीसासेहिं ' चरमैरु
मासनि श्वासै ‘अणत ' अनन्तम् अन्तरहितम्, 'अणुत्तर' अनुत्तरम् उत्कृष्टम् , लभ शीघ्र नहीं होता है, (ने वहइ वामाइ छउमत्यपरियाग पाउणित्ता) वे अनगार भगवान् उमस्य पर्याय को ही बहुत वर्षों तक पालते रहते है, (पाउणित्ता) और उस पर्याय के पालन करते २ भी यदि (आगाहे उप्पण्णे वा अणुप्पण्णे वा) किसी प्रकार की चाहे उन्हे रोगादिक बाधा उत्पन्न हो, चाहे न भी हो तो भी व, (भत्त पञ्चरखति) भक्तप्रत्यारल्यान करते है । (ते वहई भत्ताइ अगसणाए डैति) व अनेक भक्तो का अनगन द्वारा ठेदन करते है, (छेदित्ता जस्सद्राए कीरइ नग्गमावेजाव तमहमाराहिता) छेदन करके उन्होंने निम की प्रामि के लिये नानभाव धारण किया था, उस प्रयोजन की सिद्धि प्राप्त कर (चरमेहिं ऊसासणीसासेहि अणत अणुत्तर णिव्यापाय निरावरण कसिण पडिपुण्णं
शनी Alt areी भगत नथी, (ते वह पासाइ छउमत्थपरियाग पाडपनि ) ते मनार लगवान छान्यपर्यायनु ४ घना परमी सुधा पालन इने छ, (पाउणित्ता) भने पर्यायतु पासन उता २ पन्ने (आगाहे उप्पण्णे वा अणुप्पणे वा) 30 जानी मानी stunt याय है या न पाणु थाय तो पर तेसो (भत्त पच्चासति) मतप्रत्याध्यान रेछे (ते बहूइ भत्ताइ अणसणाए छति) तेसो भने मतानु अनशन बाम छन रे (छेदिता जस्सद्वाए कीरइ नम्गभावे जाव तमट्ठमाराहिता) છેદન કરીને તેઓએ જેની પ્રાપ્તિ માટે નગ્નભાવ ધારણ કર્યો હતો તે પ્રય सनी सिद्धि प्रास न ( चरमेहिं उसासणीसासेहि अणत अणुत्तर णिव्या