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पीयूषविणी टोकास व अनारम्भादिमनुग्य विषये भगवद्गतिमयो सवाद ६०७ पडिविरया, सव्वाओ आरंभसमारंभाओ पडिविरया, सव्वाओं करणकारावणाओ पडिविरया, सव्वाओ पयणपयावणाओ पडिविरया, सव्वाओ कोहण - पिट्टण-तजण - तालण-वह-बंधकिलेसाओ पडिविरया, सव्वाओ पहाण - म्हणवण्णग- विलेवण-सह-फरिस - रस- रू-गंध-महा-लकाराओ पडिविरया,
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भसमारभाजी पडिविरया सर्वस्मादारम्भममारम्भा प्रतिनिरता 'सव्वानी करणकारावणाओं पडिविरया' सर्वस्मा कर मकारणा प्रतिविरता, 'सव्वानो पयणपयाणवाओ पंडिविरया' सर्वस्मात्पचनपाचनाप्रतिबिरता 'सव्वाओ कुट्टण-पिट्टण-तज्मणताल -वह-व-परिकिलेसाओ पडिविरया सर्वस्मा कुन पिन सर्जन -ताडनवध--बन्ध - परिक्लेशा प्रतिनिरता, 'सव्वाओं ण्हाण - मद्दण-वण्णग- विलेवण-सहफरिस - रस-रूव-गध-मल्ला-लंकारानी पडिरिया' सर्वस्मान स्नान-मर्दन-वर्णकपिनन्द-स्पर्श-रस-रूपान्य-मान्या-लद्दारान्प्रतिपिरता, तथा 'जे यावण्णे
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आरभममारभ से प्रतिविरत होते है, (सव्वाओ करणकारावणाओ पडिविरया) समस्त करण एव करावणमे--करने-कराने से विरक्त होते है, (सव्वाओ पयणापयावणाओ पडिरिया) सर्व प्रकार की पचन एवं पाचन क्रिया से प्रतिविरत होते ह, (सन्चाओ कोणपिट्टण - वज्जण ताण-वह-व-परिकिलेसाओ पडिविरया) समस्त प्रकार के कुण, पण, तर्जन, साटन, वय, वन, परिक्लेश से रिक्त होते हैं, (सव्वाजो व्हाण-मद्दणवण्णग- विलेपण-सह-फरिस - रग-रूप-महा-लकाराज पडिविस्या) सपूर्ण स्नान, मर्दन, वर्णक, निलेपन, शन्द, रूप, गन, रस, स्पर्श, मान्य एवं अल्फारों से रहित
२लथी प्रतिविरक्त होय छे (सच्चाओ करणारावणाओ पतिविरया) समस्त तेभर दशवखुशी-ख-दुगववाथी विरन होय हे (सव्नाओ पयणपयाबणाओं पडिविया) सर्वज्ञरनी पथन तेभर पायन दियाथी विरडत होय छे (सव्वाजो कोट्टण-पिट्टण-तज्जण-तालण-वह-बध- परिकिलेमाओ पडिविरया ) भभन्त प्रधारना छुट्णु, पिडालु, नमन, वाइन, वध, अध, परिन्देशथी विरडत होय छे ( मन्त्राओ व्हाण - मरण-रण-विलेपण-सह-परिस-कम-रूप-गध-मल्ला-लफाराओ पडरिया) भवान, मन है, विलेपन, शब्द, स्पर्श, रस,