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पीयूवपिणी-टीपासू ६१ निदर विपये भगवद्गीतमयो सवाद ६३७ ३, सामुच्छेडया ४, दोकिरिया ५, तेरासिया ६, अवद्धिया ७, इत्येवनादिनो बहुरता -जमालमतानुयायिन १, जीपएसिया' जीवप्रदेशिका -एक एवं चरमप्रदेशो जीव इत्यभ्युपगमाजीवप्रदेशो विद्यते येपा ते तथा, एकेनाऽपि प्रदेशेन न्यूनो जीवो न भवनि, अतो येनैकेन प्रदेशेन पूर्ण मन् जीवो भवति, स एवैक प्रदेशो जीनो भवतीत्येवविधवादिन तिप्यगुप्ताचार्यमतानुयायिन २, 'अन्यत्तिया' अव्यक्तिका अव्यक्त समस्तमिद जगत् , सावादिविपये श्रमणोऽय देवो वाऽयम् इयादिविनिक्तप्रतिमासोदयाऽभावात् , ततथाऽन्यक्तम् अस्फुट वस्तु-ति मतमस्ति येपा तेऽयक्तिका , अथवा अविद्यमाना सावादिव्यक्तिरेपामित्यन्यक्तिका, आपाढाचार्यशिप्यमताऽन्ततिन ३, 'सामुच्छेइया' सामुच्छेदिका -प्रतिक्षण नारकादिभानाना समुच्छेद-आय चदन्तीति सामुच्छेदिका -क्षणक्षयिभावप्ररूपका अश्वमित्रमतानुयायिन ४, 'दोकिरिया' द्वैक्रिया-द्वेकिये गीतवेदनोष्णवेदनादिहै, एक समय में नहीं। ये जमालिमत के अनुयायी होते हे १ । जीवप्रदेशिक का ऐसा कहना है कि जीव एक चरमप्रदेशस्वरूप ही है । जीव यदि एक भी प्रदेश से न्यून हो तो वह जीव-जा प्रास नहीं कर सकता, अत जिस एक प्रदेश से परिपूर्ण होकर वह जीव कहलाता है वह उस एकप्रदेशस्वरूप ही है। ये तिष्यगुप्त आचार्य के मतानुयायी होते है २ । अव्यक्तिक का यह कहना है कि यह समस्त जगत साधु आदि के विषय में सर्वया अन्यक्त है, क्यों कि ये देव है, ये श्रमण है-इस प्रकार का भिन्न २प्रतिभास नहीं होता है। इसलिए वास्तविक क्या है यह सब अयक्त-अस्फुट है। अथवा ये अयक्तिक जन किसी को भी साधुल्यक्ति नहीं मानते हैं । ये आपाढाचार्य के शिष्यों के मत के अन्तर्वर्ती माने जाते हैं ३ । सामुच्छेदिक-मतवादी प्रत्येक पदार्थ को क्षणविनश्वर मानते हैं। ये अश्वमित्र के मत के अनुयायी हैं ४ । द्वैक्रिय-मतवादी की ऐसी मान्यता है कि एक ही समय में समयमा नडि सामालिभतना मनुयायी डाय छ (०) जीवप्रदेशिक भनु એવું કહેવુ છે કે જીવ એક ચરમ--...દેશ-સ્વરૂપ જ છે જીવ જે એક પ્રદેશથી ધૂન (મ) હોય તો તે જીવનજ્ઞા પ્રાપ્ત કરી શકે નહિ આથી જે એક પ્રદેશથી પરિપૂર્ણ હોય તે જીવ કહેવાય છે, તે એક પ્રદેશ સ્વરૂપ જ છે આ तिष्यशुत मायना मतानुयायी डाय छ (३) अव्यक्तिक-मनु म કહેવું છે કે આ સમસ્ત જગત સાધુ નાદિના વિષયમાં સર્વથા અવ્યક્ત છે, કેમકે તેઓ દેવ છે, આ શમણ છે, આ પ્રકારનો જુદો જુદો પ્રતિભાસ હેતે નથી એથી વાસ્તવિક શું છે એ ખધુ અવ્યક્ત—અલ્ફટ છે અથવા અ અવ્યક્તિક અને કેઈને પણ સાધુ વ્યક્તિ માનતા નથી આ અષાઢાચાयना शिष्याना मतना मतपत्ती भनाय छे. (४) सामुच्छेदिक-मा प्रत्य પદાર્થને ક્ષણભર માને છે, તેઓ અધામના મતના અનુયાયી છે.