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દરર
...” मूलम्-तए णे दहपइण्णे केवली पढ़ई वासाई केवलिपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता मासियाए सलेहणार अप्पाणं झुसित्ता, सहि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता, जस्सहाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अपहाणए अदंतवणए केसलाए च दर्शनं चेति ज्ञानदर्शन, 'तत्र ज्ञान विशेषाऽवोधरूपम्, दर्शन सामान्यावबोधरूप 'समुपजिहिति' समुत्पत्स्यते-उदेष्यनि ।। सू०.५४ ॥
टीका-'तएण' इत्यादि । 'तए ण से दढपइण्णे केवली ' नत खलु स दृढप्रतिज्ञ केरली 'वहइ वासांइ केलिपरियाय' वहूनि वर्षाणि केवलिपयोय 'पाउणिहिति' पालयिष्यति, 'पाउणिता' पालयिचा, 'मासियाए सलेहमाए अप्पाण झूसित्ता' मासिक्या मैलेखनयाऽऽमान जूपिवा-सेविका सहि भत्ताइं अगसमाए छेइत्ता' पष्टिं भक्तानि अनशनेन जित्वा ' जस्सद्वाए' यस्यार्थाय-यन्निमित्त 'कोरइ' भी अश से हीन नहीं ऐसे (केवलवरणाणदसणे) इन्द्रियों की सहायता आदि से रहित होने के कारण केवल-असहाय उत्तम ज्ञान एव उत्तमदर्शन उत्पन्न होगे ॥सू० ५४॥
'तए ण से दहपइण्णे केवली' इत्यादि। . . (तएण) इस के बाद (से दढपदण्णे केवली) वे दृढप्रतिज्ञ केवली भगवान् (बहुइ वासाई) बहुत वर्षों तक (केवलिपरियाग) केवलिपर्याय का (पाउणिहिति) पालन करेंगे, (पाउणिता) पालन करके (मासियाए सलेहगाए अप्पाणं झूसित्ता) एक मास की सलेखना से आत्मा को झोसकर (सदि भत्ताइ अणसणाए छेदिता) एवं साठ भक्तों का अनशन से छेदकर (जम्सद्वाए) जिसके निमित्त (नग्गभावे) नग्न ઈતિઓની સહાયતા આદિથી રહિત હોવાને કારણે કેવળ-અસહાય એવા ઉત્તમ જ્ઞાન તેમજ દર્શન ઉત્પન્ન થશે (સૂ પક)
'तए १ से ढपइण्णे केवली' इत्यादि ।
(तए ण) पार पछी (से दढपइण्णे केली) तहतिज्ञ उसी 4 पान (बहइ वासाइ) घ १२से सुधी किवलिपरियागं) अपसीपर्यायनु (पाउ. विहिति) पाबन ४0, (पाउणिता) पासन शने (मासियाए सलेणाए अप्पाण झसित्ता) २४ भासनी सोमनाथी सामान सेवान, (सदि भत्ताइ अणसणाए छदिवा) तेभन सा सस्तोने मनशनयी ६नशने (जस्सदाए) नानिमित्त