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औपपातिक
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वोहिं बुज्झिहिति, बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति ॥ सू० ५२ ॥
मूलम् - से णं भविस्सइ अणगारे भगवंते ईरियासमिए जाव गुत्तवंभयारी ॥ सू० ५३ ॥
टीका 'से णं' इयादि । 'से णं' स दृढप्रतिज्ञ सद्ध 'तहारूवाण' तथारू पाणा=सम्यग्ज्ञानादिसम्पन्नानां ‘येराण' स्वनिराणाम्, 'अतिए' अन्तिके समीपे 'केवल घोहिं' केथला बोधि=विशुद्धं सम्यग्दर्शन 'बुज्झिहिति' भोत्स्यते = प्रास्यति, अनुभविष्यतीत्यर्थ, 'बुज्झित्ता' बुदद्भ्वा 'अगाराओ' अगारात् गृहात गृह परित्यज्ये यर्थ, 'अणगा रियं' अनगारिता साधुत्व 'पन्नइहिति' प्रनजिष्यति = प्राप्स्यति ॥ सू ५२ ॥ टीका 'सेणं' इत्यादि । 'से ण' स खलु दृढप्रतिजो दारक 'भविस्सर अणगारे ' अनगारो भविष्यतीयन्वय स कांगो भविष्यतीत्याह 'भगवते' भगवान् = अतिशयधारी, 'ईरियासमिए' ईर्यासमित = गमनक्रियाया यतनायुक्त, 'जाव' यावत् - यावच्छब्दात् भाषासमित एपणा समित, इत्यादि पञ्चसमितियुक्त, 'गुत्तबंभयारी' गुमब्रहाचारी = गुप्तह्मचर्यवान् ॥
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५३ ॥
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'से ण तहाख्वाण' इत्यादि ।
( से ण) वह दृढप्रतिज्ञ कुमार नियम से (तहारूत्राण येराण) तथारूप-सम्यग्ज्ञान आदि गुणों से युक्त स्थविरों के ( अतिए) पास ( केवलं वोहिं ) केवल बोधि कोविशुद्ध सम्यग्दर्शन को (बुज्झिहिति) प्राप्त करेगा - उसका अनुभव करेगा, ( बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पव्त्ररहित ) अनुभव करने के बाद फिर वह अगार - अवस्था से विरक्त हो कर साधु अवस्था को प्राप्त करने वाला होगा ।। सू ५२ ।।
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'से ण भविस्सर' इत्यादि ।
( सेण ) वह दृढप्रतिज्ञ कुमार ( अणगारे भगवते ) अनगार भगवत से ण तहारूनाण' धत्याहि
(सेज) ते प्रतिज्ञ उभार नियमथी (तहरूवाण थेराणं) तथा३य सभ्यगुज्ञान आदि गुणोथी युक्त स्थविशेनी (अतिए) पासे (केवलं बोहिं) मे ठेवण विशुद्ध सभ्यग्रहशनने ( बुज्झिहिति) आस रशे-तेना अनुभव ४२, ( बुज्झित्ता अगाराओ अनगारिय पव्नइहिति) अनुभव पुरी सीधा पछी ते सार - અવસ્થાથી વિરક્ત થઇને સાધુ-અવસ્થાને પ્રાપ્ત કરવાવાળા થશે (સૂ ૫૨)
'से ण भविस्सर' त्याहि
(से ण) ते दृढप्रतिज्ञ कुमार (अणगारे भगवते ) अनगार लगवन्त (भषि