________________
-
पोषयषिणी-टोका स २८ अम्पडपरिग्राजक यिपये भगवदगौतमयो मयाद ५७५ क्खड एवं भासइ एवं पन्नवेड एवं परूवेइ । एवं खलु अम्मडे, परिवायए कपिल्लपुरे पयरे घरसए आहारमाहारेइ, घरसए सहि उवेड । से कहमेवं भंते । एवं ॥ सू० २८॥
मूलम्-गोयमा । जं णं से बहुजणे अपणमण्णस्स 'अण्णमण्णरस एवमाटकपड' अन्योन्यमेवमारयाति-हे भगवन् ! जनसमूह परस्परमि14 वक्ति, 'एर मासा' व भापते, 'एवं पनवेइ' एप प्रजापयति, 'एव परूवेइ' एव प्ररूपयति, 'एर खलु अंम्मटे परिवायए कपिल्लपुरेणयरे' एव सन्चम्बड परिबाजा काम्पिन्यपुरे नगरे, 'घरसए आहारमाहारेद' गृहगतादाहारमाहरति-मिक्षा गृहगाति, 'घरसए वसहि उवेइ' गृहगते वसतिमुपैति, 'से कहमेय भंते एर' तत् कथमेतद् भगवन् ! ज्वम्-इति भगवन्त प्रति शिष्यप्रश्न ॥ मू० २८॥
टीका--भगवानाह-'गोयमा!' इत्यादि । 'ज से बहुजणे अण्णमण्णजणे ण) बहुत से लोग ( अण्णमगरस) परस्पर जो (एकमाइखद ) इस प्रकार कहते है, (एव भासद) इस प्रकार भाषण करते है, (एव पनवेइ ) इस प्रकार अच्छी तरह ज्ञापित करते हैं, (एव परूवेट) इस प्रकार प्ररूपित करते है कि (एवं सलु अम्मडे परिवायए कपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहारेइ) ये अम्बटपरिमाजक कपिल्लपुर नगर में सौ घरा म आहार करते है, एव (घरसए वसहिं उचेइ) सौ घरों में निवास करते हैं, (से) सो (भते') हे भदत । (कहमेय ) यह बात कैसे है । | सू० २८॥
'गोयमा! जंण से बहुजणे' इत्यादि । ।
प्रभु गौतम के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते है कि (गोयमा') है गोतम । (बहुजणे ण) ugl att (अण्णमण्णस्स) ५२२५२ २ (एवमाइक्खइ) 241
२ ४९ छ, (एर भासइ) 0 रे माप रे , (एव पन्नवेइ ) मा मारे मारी ते ज्ञापित ४३छ ( वे छे), (एय परूवेइ) मा प्रारे ५३पित १२ (पप गलु अम्मडे परिव्याया कपिल्लपुरे णयरे घरसा आहारमाहारेइ) २४२७ परिवार पिस२ नगरमा सो घरमा माछा२ ४२ छ तभा (घरसए वसहिं उबेइ) सो परीमा निवास ८२), (से) त ( भते । ) महन्त ! (कहमेय ) मा पात छे ? (सू २८) 'गोयमा । ज ण से बहुजणे' त्यादि प्रभु गौतमना भनी उत्तर भापत ४९ छ ( गोयमा!)