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जित्तए, तं मा णं अम्हे इयाणि आasकालं पि अदिष्णं गिण्हामो, अदिष्णं साइजामो, मा णं अम्हं तवलोवे भविस्सर । तं सेयं खलु अहं देवाणुप्पिया ! तिदंडं, कुंडियाओ य, कंचसमयेऽपि ‘अदिष्ण गिण्हामो ' असे गृहूणीम = अमुक न स्वीकुर्म, 'जविष्ण साइनामो ' अदत्त स्वादयाम =अदत्त जल मा स्वादयाम इत्यवय, ' मा णं अम्ह तवलोवे भविस्सर' मा खल अस्माक तपोलोपो भविष्यति, अदत्तस्याग्रहणेऽनास्वादने चास्माक तपोलोपो न भविष्यतीत्यर्थ । ' त सेय खलु अम्दं देवाशुप्पिया !" तत= तस्मात् श्रेय खलु अस्माक हे देवानुप्रिया ! 'तिदडय ' जिदण्डक 'कुडियाओ य ' कुण्डिकाश्वः = कमण्डलन्, 'कचणियाओ य' कावनिकाथ = रद्राक्षमालिका, 'करोडियाओ
अम्द तवलोवे भविस्स) तथा हम सब लोगों का यह भी दृढ निश्चय है कि आगामी काल में भी हम सब विना दिया हुआ जल न ग्रहण करे और न उसे पिये, क्यों कि इस प्रकार के आचरण से हमारी तपस्या का लोप हो जायगा, अंत वह भी सुरक्षित रहे इस अभिप्राय मे हममें से किसी को भी अदत्त जल ग्रहण नहीं करना चाहिये और न उसे पीना ही चाहिये। ( त सेय खलु अम्ह देवाणुप्पिया' तिदड कुडियाओ य, कचणियाओ य करोडियाओ य, भिसियाओ य, छण्णालए य, अकुसए य, केसरिया य, पवि
तर य, गणेत्तियाओ य, छत्तए य, वाहणाओ य, पाउयाओ य, धाउरत्नाओ य एगते एडिता गग महानइ ओगाहिता) इसलिये हे देवानुप्रियो । अब हम सब की भलाई इसी में है कि हम सब निदण्डों को, कमण्डलुओं को, स्वाक्ष की मालामा को, करोटिकाओं
अह तलवे भविस्सइ) तथा व्यायो दृढनिश्चयी डीयो ने लविण्याणभा પણ દીધેલુ ન હેાય એવુ જલ ગ્રહણ કરવું નહિં અને પીવુ નહિ, કેમકે એ પ્રકારના આચરણથી આપણી તપમ્યાને લેપ થઈ જશે માટે તે સુરક્ષિત રહે એવા અભિપ્રાયથી આપણામાના કાઈ એ પણુ અદત્ત જલ श्रद्धा न ४२५ लेहा मते भी सुन ले ( त सेय सलु अम्ह देवाप्पिया ! तिदड, कुंडियाओ य, कचणियाओ य, करोडियाओ य, केसरियाओ य, पवित य, गणेत्तियाओ य, छत्तए य, वाहणाओ य, पाउयाओ या घाउरत्ताओ य एगते एडिता गग महानइ ओगाहित्ता ) थे भाटे हे देवानुप्रियो । हुवे આપણી ભૂલાય એમા જ છે કે આપણે ત્રિકાને, હમ લુંએને, રૂાક્ષની