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पपिषिणी-टोका र २४ अम्बडपरिनाशक शिष्य विहार ५६१
मूलम्-एवं खल्लु देवाणुप्पिया! अम्हं इमीसे अगामियाए जाव अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से उदए जाव मीणे, तं सेयं खल देवाणप्पिया। अम्हं इमीसे अगामियाए
टीका-~~ते परिमाजका परस्पर यदवादिपुस्तनिर्दिशति--' एवं खलु देवाणुप्पिया' इत्यादि । 'एर सलु देवाणुप्पिया व गलु हे देवानुप्रिया ! 'अम्हं उमाले अगामिाए जाय अडीए' अस्माकमाया अग्रामिकाया यावदटव्या , 'कचिदेसतरमणुपत्ताण में उदए जाप झीणे' किश्चिद्देशान्तरमनुप्राप्ताना तत् उदकं यावत् क्षीणम्, 'त लेय ग्वलु देवाणुप्पिया' तत्-नस्मात् श्रेय खलु हे देवानुप्रिया ? । 'अम्ह हमीस अगागियाए जार अडीए अस्गाकमस्याममामिझाया यावदटव्याम्, नहीं देखकर, (अण्णमण्ण महाति) परस्पर में एक दूसरे का आह्वान करने लगे, (सधा. वित्ता एवं पयासी) और आहान करके इस प्रकार बोले । सू० २३॥
एवं सलु देशपिया!' इत्यादि । __(एव ग्यलु देवाणुप्पिया!) हे देवानुप्रियो । यह बात बिलकुल ठीक है कि (मम्द इमीसे आगामियाए जाप अडपीए कंचिदेसतरमणुपत्ताण से उदए जाव झीणे) हम लोगों का, इस अग्रागिक अटवी मे कि अभी जिसे थोड़ी ही तय की है, वह अपने २ स्थान से लाया हुआ जल अप समास हो चुका है, (त सेय खलु देवाणुप्पिया! अम्ह इमीसे अगामियाए जार अडवीए उद्गदायारस्स सपओ समंता भग्गणगवेसणं करित्तए) ऐसी हालत में हमारे-तुम्हारे लिये यही एक कल्याणकारक मार्ग है कि हम इस अप्रामिक एवं निर्जन अटवी में सर्व प्रकार से चारों ओर किसी जलमासा साया, (सदायित्ता एव क्यासी) मन मादायी मा प्रारे ४१ साया (१० २३)
"एव सलु देवाणुप्पिया । " इत्यादि
(एव सलु देवाणुप्पिया 1) पानुप्रिया से बात मिaye As छ 3 (अम्ह इमीले अगामियाए जाव अडवीए कचि देसनरमणुपत्ताण से उदए जाय झीणे) २५ मा पनमा या २ यासीन माध्या छी, अने भी જરાક જ રેતાયા છીએ, ત્યાં તે પિતાના સ્થાનેથી લાવેલ પાણું સમાપ્ત 25 गयु (त सेय सलु देवाणुपिया । अम्ह इमीसे अगामियाए जाच अडवीए उदगदायारस्म मपओ समता मग्गणगवेसण करित्तए) की हालतमा समास