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पीयूषवर्षिणी-टोका
१४ प्रयनित श्रमणोपपातविषये गौतमप्रश्न
भवंति तं जहा- कंदप्पिया कुक्कुड़या मोहरिया गीयरsप्पिया नचणसीला, ते णं एएणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाई सामण्णपरियायं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणासेमु पन्या समणा भवंति ' यावसन्निवेशेषु प्रत्रजिता श्रमणा भवन्ति, 'तं जहा ' तद्यथा - ' कंदप्पिया' कान्दर्पिका -हास्यकारका भाण्डादय, 4 कुक्कुदया ' कौकुचिका कुकुचेन=कुखितचेष्टया चरन्तीति कौकुचिका ये च भ्रू नयनवदनकरचरणाऽऽद्रिभिभण्डा इव तथा चेष्टन्ते यथा स्वयमहसन्त एव परान हासयन्ति ते । ' मोहरिया ' मौखरिका =वाचाला --नानाविधाऽसम्बद्वभाषिण इयर्थ । 'गीय-रह- पिया' गीतरति - प्रिया - गीतेन या रति कोडा सा प्रिया येषा ते तथा, 'नचणसीला ' नर्तनशीला 'ते एएण विहारेणं विरमाणा ' ते खलु एतेन विहारेण विहरन्त – उक्तमाचरणमाचरत, 'बहूइ वासाड सामण्णपरियायं पाउणति' बहूनि वर्षाणि श्रामण्यपर्याय = चारित्रपर्याय पालयन्ति, ' पाउणित्ता ' पालयिवा ' तस्स ठाणस्स , तस्य स्थानस्य =
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समणा) प्रत्रजित श्रमण होते हैं, (त जहा) जैसे- (कदप्पिया कुक्कुडया मोहरिया गीयरइप्पिया) काढपिंक - हास्यकारक भाड आदि, कौकुचिक -, नयन, वदन, कर एव चरण आदिकों से कुसित चेष्टाएँ करके भाडों की तरह स्वय न हँसकर दूसरों को हँसाने वाले, गीतपूर्वक क्रीडा को अधिक पसंद करने वाले, (नच्चणसीला ) नृत्य करने के स्वभाव चाले,
ये
सब (एएण विहारेण विहरमाणा बहूड वासाइ सामण्णपरियाय पाउणति ) अपने २ पद के अनुसार उक्त आचरण को आचरण करते हुए बहुत वर्षोंतक श्रमणपर्याय को पालते हैं, (पाणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइय- अपडिक्कता कालमासे काल
समणा) प्रति श्रभ थाय छे, (त जहा ) नेवा (कदप्पिया कुक्कुइया मोहरिया गीय- रइ-पिया) अहर्षि४ - हास्या२४ (लवाया) याहि, डीमुथि -, નયન, વદન, કર તેમજ પગ આદિ વડે કુત્સિત ચેષ્ટાએ કરી ભવૈયાની પેઠે स्वयं (चोले) न हसता मीलने इसाववावाजा, भौमरि-अने अहारना, अस - श्रद्ध असाथ श्वावाजा, गीतयुक्त डीडाने वधारे पसरवावाजा, (नच्चणसीला ) नृत्य ४रवाना स्वभाववाजा, या मधा ( एएण विहारेण विहरमाणा बहूई वासाइ सामण्णपरियाय पाउणति) पोत घोताना यह प्रभात सायरજુને આચરતા આચરતા ઘણા વરસા સુધી શ્રમણ-પર્યાયને પાળે ( पाउणिचा तस्स ठाणस्स अणालोइय - अपडिक्कता कालमासे काल किच्चा उस्कोसेण