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__ पोयपधषिणी-टीका स ११ अन्त पुरिकादीनामुपपातयिपये गौतमप्रश्न ५२७ रंभेणं अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्तिं कप्पेमाणीओ अकामवंभचेवासेणं तामेव पइसेजं णाडकमंति। ताओणं इत्थियाओ एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणीओ बहूई वासाई, सेसं तं चेव, जाव चउट्टि वाससहस्साडं ठिई पण्णत्ता ॥सू० ११ ॥ समारम्भेग अन्पेन आरम्भममारम्भेग, वित्ति कापेमाणीओ' वृत्ति कन्पयत्य --वृत्ति जीविका कुर्नागा ,अामब्रह्मचर्यवासेन-अामाना=निर्जराधनपेक्षाणा ब्रह्मचर्येवासस्तेन 'तामेव पइसेन' तामेव पतिगया-पया सह सेविता गाया-पतिशग्या 'गाइक्कमति' नातिक्रामन्ति, परपुरुषपरिहारेण सर्वथा पनिवतधर्मपालिका इत्यर्थ , 'ताओ ण इत्थियाओ एयाख्वेण विहारेण विहरमाणीनो' ता खल बिय एतद्रूपेग रिहारेण विहन्त्य , 'वहूइ वासाइ आउय पालेंति' वहनिवगि आयुष्य पाल्यन्ति, पालयिवा, शेष तदेव यावत्-अत्र यावच्छन्देनेद दृश्यम् कालमासे काल कृत्याऽन्यतमेष व्यन्तरेपु देवलोकेषु देव वेनोपपात प्राप्ता भवन्ति, तत्र-देवलोके तासा
अन्य समारभ से, और अन्प आरम्भ-समारभसे अपनी आजीविका चलाती है, (अकाम-वंभचेर-बासेणं तामेव पडसेज्न णाइक्कमति) और परवशता मे ब्रह्मचर्य का पालन करती हुई अपने पति की गय्या का उल्लघन नहीं करती हे-पातिव्रत्य धर्म के पालन में निरत रहा करती हैं, इस प्रकार जो स्त्रिया अपने जीवन को व्यतीत करती है, (ताओ ण इत्थियाओ एया. स्वेण विहारेण विहरमाणीओ बहुइ वासाइ आउय पालेंति) वे स्त्रिया इस प्रकार की अपनी नैतिक प्रवृत्ति से युक्त बनी रह कर बहुत वर्षों की आयु पालती है, (सेस त चेव) एव जर उनका मरने का अवसर आ जाता है तब वे उस अवसर मे मर कर अन्यतम व्य
समारभेण अप्पेण आरभसमारभेण वित्तिं कापेमाणीओ)तमा म५ मा सथी, અ૫ ચમાર ભથી અને અ૮૫ આર ભગ્નમાર ભયી પિતાની આજીવિકા ચલાવે छे (अकामबंभचेरवासेण तामेव पइसेज्ज णाइक्कमति) भने ५२५शताथी બ્રહ્મચર્યનું પાલન કરતી થકી પિતાના પતિની શય્યાનુ ઉલઘન કરતી નથીપતિવ્રત્ય ધર્મના પાળનમાં નિરત રહ્યા કરે છે આ પ્રકારે જે સ્ત્રીએ પોતાના
बनने व्यतीत २ छ (ताओ ण इत्थियाओ एयारूवेण विहारेण विहरमाणीओ यहूइ वासाइ आउय पालेंति) त सीमा । प्रा२नी पोतानी नति४ प्रवृत्ति ४२ती २हीने घए। परमोनी आयु लागवे (सेस त चे) तेभर त्यारे તેમના મરવાને અવસર આવે છે ત્યારે તે અવસરમા મને બીજા વ્યતાના