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पोयपषिणी-टीका सु ९ अण्डयद्वकादीनामुपपातविषये गौतमप्रश्न ५५९ काल किच्चा अण्णयरेसु वाणमतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तहि तेसिं गई तहिं तेसि ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते।तेसिंणभंते देवाणं केवइयंकालं ठिई पण्णत्ता गोयमा मक्लिष्टपरिणामा महारौद्र यानाऽऽवेशन देव व न लभन्ते, अत अमक्लिष्टपरिणामा इति विशिष्य प्रदर्मिता , ते कालमासे काल कृपा, 'अण्णयरेसु वाणमतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भाति ' अन्यतमेपु व्यन्तरेषु देवलोकेषु देव वेनोपपत्तारो भवन्ति, 'तहिं तेसिं गई ' तत्र तेपा गति , 'तहि तेसिं ठिई ' तर तेषा स्थिति , 'तहि तेसि उववाए पण्णत्ते' तत्र तेपामुपपात प्रजम । 'तेसिं ण भते ! देवाण केवइय काल ठिई पण्णत्ता' तेपा सल भदन्त । देवाना कियन्त काल स्थिति प्रनता , 'गोयमा । बार"किलिपरिणामा) और जिनके परिणाम मरिष्ट नहीं होते है, ऐसे जीव (अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएमु देवत्ताए उवात्तारो भवति ) किसी एक व्यन्तर देव को पर्याय से उपन होते है । (तहिं तेमि गई, तहिं तेसि ठिई, तर्हि तेसि उववाए पण्णत्ते) वहीं पर उनको गति, वहीं पर उनका स्थिति एव वहीं पर उनका उपपात कहा गया है, (तसि ण भते ! देवाण केवडय काल ठिई पण्णता) हे भदत । वहा उन जीवों को
(१) मक्लिष्टपरिणामों के मद्भाव में जीवों को देवगति का वध नहा होता है । ___ महा आर्तगैठध्यान के परिणाम सक्लिष्ट परिणाम है, अमक्लिष्ट परिणाम ही देवगति की
प्राप्ति में कारण है, इस बात को प्रदर्शित करने के लिये "असफिलिट्ठपरिणाम" इस पद का प्रयाग किया है। २ भातने सेट छ, '(असकिलिट्रपरिणामा) अननु परिणाम-मत साटन थायमेव ७१ (अण्णयरेसु वाणमतरेसु देवलोग्सु देवत्ताए उववत्तारो भवति) 5 मे४ व्यत२ पक्षोभा व्यत२-हेपनी पर्यायथी उत्पन्न थाय छे (तहिं तेसि गई तहिं तेसिं ठिई तहिं तेसिं पाए पण्णत्ते) त्यातभनी गति, त्या तेमनी स्थिति, तभ० त्या तमना S५पात लवामा माथ्यो छ (तसिं णं भते । देवाण केव इय काल ठिई पण्णत्ता) मत। त्यात वोनी स्थिति सा नी मनाची
(૧) સ કિલષ્ટ પરિણામના સદુભાવમાં જીવોને દેવગતિને બધ થત નથી મહા--આરૌદ્રધ્યાનન. પરિણામ સકિલષ્ટપરિણામ છે અસ કિલષ્ટ પરિણામ પણ દેવગતિની પ્રાપ્તિમાં કારણભૂત છે એ વાત પ્રદર્શિત કરવા "असकिलिट्ठपरिणाम" से पहनी प्रयोग ४यो छ