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पीयूपपणी टीका सू ३ पापकर्मबन्धे गौतमप्रश्न.
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हय - पञ्चकखाय - पावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतवाले एतत्ते पावकम्मं अण्हाइ १, हंता । अण्हाइ ॥ सू०३ ॥ निरहित, तथा - 'अ-पडिय-पच्चन वाय-पात्रकम्मे ' अप्रतिहत प्रत्यायत- पापकर्मा- प्रति हतानि अतीतकालकृतानि निन्दाद्वारेग, प्रत्यारयातानि भविष्यत्कालभावीनि निरृत्तिद्वारेण, पापकमागि=प्रागातिपातादिरूपाणि येन स प्रतिहत प्रयास्यात पापकर्मा, भूतभाविपापनिपेाभावेन यस्तथा न भवति स - अप्रतिहत प्रयाख्यात पापकर्मा, अतएव - 'सकिरिए ' सक्रिय = कायिक्यादिक्रियायुक्त, 'असबुढे' असंत = अनिरुद्वेन्द्रिय, 'एगतदडे' एकान्तदण्ड -एकान्तेनैन= सर्वथैव दण्ड- यत्यात्मान पर या पापप्रवृत्तितो यस एकान्तदण्ड, ‘एगतनाले' एकान्तयात्र सर्वथा मिथ्यादृष्टि, अतएव 'एगतमुत्ते' एकान्तमुप्त = सर्वथा मिथ्यात्वनिद्रया प्रसुप्त, 'पावकम्म' पापकर्म प्राणातिपातादिकर्म ' अण्हाइ ' आस्रवति = वन्नाति किम् ', भगवानाह - 'हंता अण्हाड' हन्ताऽऽस्रवति-हन्त इति स्वीकारे, आस्रवति=नप्नाति इद्वमुत्तरवाक्यम् ||सु०३॥ अनुष्ठान करने में लगा हुआ है, ( अविरए) प्राणातिपातादिक से जिसने निरति धारण नहीं की है, तथा (अ-प्पडिहरा - पञ्चनखाय - पावकम्मे ) लगे हुए पापकर्मों का निंदा द्वारा तथा भविष्यत् काल मे बधनेवाले पापकर्मों का प्रयाख्यान - निवृत्ति - द्वारा जिसने परित्याग नहीं किया है, ( सकिरिए) कायिकी आदि क्रियाओं से जो युक्त है, इस लिये (असवुढे) असनृत-अनिरुद्रेन्द्रिय बना हुआ है, ( एगतदडे ) अपने को अथवा परको जो पापमय प्रवृत्ति से ढडित-दुसित करता रहता है, जो ( एगतवाले) एकान्तमिथ्यादृष्टि है और ( एगतसुते ) सर्वथा मिथ्या की निद्रा मे गाढ सुप्त बना हुआ है, वह ( पावकम्मं ) पापकर्म-प्राणातिपातादिक कमाँ का ( अण्हाइ ) बन्ध करता है क्या ? तन भगवान् ने कहा, (हता) हा गौतम ! ( अण्हाइ ) बन्ध करता है
भव सावद्य अनुष्ठान ४२वामा तत्पर रहे। छे, (अविरए) प्रातिपात याहिथी भेविरति धारय उरी नथी, तथा ( अ - पडिहय - पच्च+साय - पावकम्मे ) લાગી રહેલા પાપકર્મીને નિદા દ્વારા, તથા ભવિષ્ય કાળમા મધાનાર પાપ४भना प्रत्याख्यान-निवृत्ति द्वारा, मेये परित्याग क्यों नथी, (सफिरिए) अयिष्ठी आदि डियागोथी ने युक्त छे, तेथी (असवुडे) अस वृत - अनिरुद्ध छद्रियोवाणी जन्यो है, ( एगतदडे ) पोताने अथवा परने ने पायभय प्रवृत्तिथी ६डित-हुतिय रे छे सेवा ते (एगतनाले) भेात मिथ्यादृष्टि हुने ( एगतसुत्ते) सर्वथा मिथ्यात्वनी घोर निद्रामा सुतेोा छे, ते (पावकम्म) पाथउर्भ - प्रतियात माहिङ उभेना (अण्हाइ) अध ४रे ह े शु ? त्यारे लगवाने छु - (हता) डा गौतम ! (अव्हाइ ) धरे छे