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________________ ४९० औपपातिकमरे वंदित्ता णमंसित्ता एवं बयासी-सुअम्खाए ते भंते। णिग्गंथे पावयणे जाव किमग! पुण एत्तो उत्तरतरं एवं वदित्ता जामव दिसं पाउभूए तामेव दिसं पडिगए। सू०६०॥ णमसित्ता एव बयासी' यदिया नमस्यिता एवमवादीत- मुअक्वाए ते भते ! णिग्गंये पावयणे नाव फिमग ! पुण एत्तो उत्तरतर' स्वाग्यात तर भदत । निमन्थ प्रवचनम् यावत् फ्रिमा पुनरतस्मादुत्तरतरम् । 'एर पदित्ता जामेव दिस पाउन्भूए तामेव दिस पडिगए' ण्यम् उदिना यस्या एक दिश प्रादुर्भूत , तामेव दिश प्रतिगत ॥ सू० ६०॥ वयासी) वदना एव नमस्कार कर फिर उन्हान प्रभु से इस प्रकार कहा-(सुअक्साए । भते । णिग्गये पारयणे) हे भदन्त । आपन निम्रय प्रवचन का उपदेश बहुत ही सुदर पूर्वापरविरोधरहित-सर्वोकृष्ट किया है । (जार किमग पुण एत्तो उत्तरतर) इस न प्रवचन में ऐसा कोई सा भी विपय नाकी नहीं बचा जिस पर आपन प्रकाश न डाल अच्छी तरह से विवेचन नहीं किया हो । आपन सब कुछ एक ही साथ बहुत ही अच्छी तरह शब्दों में समझा दिया है, हमने तो ऐसा उपदेश आजतक नहीं सुना, कल्याण एवज नके उपयोगी सब विषय आपने कहे है ।-इत्यादि । एव वदित्ता जामेव दिस पाउन्भू तामेव दिस पडिगए) इस प्रकार प्रभु को स्तुति रूप में कह कर कूणिक राजा जिस १५० से आये थे उसा दिशा का ओर वहा से वापिस चले गये ।।सू० ६०॥ P ग्व वयासी) पहना तेभर नमा२ ४शन पछी तसा प्रलुन मा 3-(सुअक्साए ते भते ! णिग्गथे पावयणे) हे महन्त | आप मा नियन्य પ્રવચનને ઉપદેશ બહુજ સુદર-પૂર્વાપરવિધરહિત-સર્વોત્કૃષ્ટ થયા છે (जाव किमग पुण एतो उत्तरतर) मा निन्य अवयनमा मेवा 10 વિષય બાકી રહ્યો નથી જેના ઉપર આપે પ્રકાશ ન નાખે હેયસારી : વિવેચન ન કર્યું હેય આપે તમામેન્તમામ એક સાથેજ બહુજ સારી ૧ મીઠા શબ્દોમાં સમજાવી દીધુ છે અમે તે એ ઉપદેશ આજ સુથ સાભળ્યું નથી કયાણ તેમજ જીવનમાં ઉપયોગી બધા વિષય આપે કલ્પ छ त्यहि (एव वदित्ता जामेव दिस पाउन्भए तामेव दिस पडिगए) - પ્રકારે પ્રભુની સ્તુતિરૂપમાં કહીને કૃણિક રાજા જે દિશાએથી આવ્યા હતા તે દિશા તરફ પાછા ચાલ્યા ગયા ( ૬૦)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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