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पोयूषषिणी टीका सू ५४ फूणिकस्य भगघदुपासना
४३१ भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तंजहा-(१) सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए, (२) अचित्ताणं दव्याणं अविओसरणयाए, (३) एगसाडियं उत्तरासंगकरणेणं, (४) देशीय गन्द , 'पाहणाओ उपानही 'बालवीयणि' वालन्यजनीम्-चामरम्, एतानि त्यक्या, 'जेणेव समणे भगर महागीरे' यौन अमणो भगवान महावार , 'तेणेव उवागन्छड़, उवागन्छित्ता' तत्रैवोपागच्छति, उपागय, 'समण भगवं महावीर' श्रमण भगवन्त महावार 'पचविहेणं अभिगमेण अभिगच्छद्र' पञ्चविधेनाऽभिगमेनाभिगच्छतिपञ्चप्रकारेण अभिगमेन साकारनिगपेग अभिमुस गच्छति, 'तजहा' तद्यथा-त पञ्चविधाभिगमन यया-'सचित्ताण दव्याण विओसरणयाए' सचित्ताना न्याणा व्युसर्जनतयाहरितफलकुसुमाढाना वस्तूना त्यागेन १, 'चित्ताण दव्याणं भविओसरणयाए ' अचित्ताना न्याणामन्युसर्जनतया, अचित्ताना वस्त्राभरणादीनाम् अयागन २, 'एगसाडियमुत्ततलवार, उर, मुकुट, उपानत्-पगरग्न, ण्व वालव्यजनी-चामर । फिर वे (जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छद) जहा श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे वहाँ पर आये, (उवागन्छित्ता समण भगव महार पचविहेण अभिगमेण अभिगच्छइ) जाते ही वे पाच प्रकार के अभिगमन-सत्कारपिशेप से युक्त होकर प्रभु के सन्मुर पहुंचे। व पाच प्रकार के मत्कारविशेष टस प्रकार है-(सचित्ताण दव्याण विओसरणयाए) हरित फल फूल आदि सचित्त द्रव्यां का परित्याग करना, (अचित्ताण दव्याण अविओसरणयाए) वस्त्र आभरण आदि अचित्त द्रव्या का परित्याग नहीं करना, (एगसाडियमुत्तरासगकरणेण) भाषा का यतना के लिये अग्पण्ड अथात् जो साया हुआ न हो ५२मा, तभी सयानी-याभ२ पछी तसा (जेणेन समणे भगर महावीरे तेणे यागच्छइ) या अभए मापान महावीर सिता उता त्यामाच्या (यागच्छित्ता समण भगव महावीर पंचरिहेण अभिगमेण अभिगच्छइ) माता જ તેઓ પાચ પ્રાગ્ના અભિગમન–સાવિશેષથી યુક્ત થઈને પ્રભુના सन्मुम पहा-या ते पाय अडान सदा विशेष मा ५४२ छ-(सचित्ताण दव्याण निओसरणयाए) दीसा ॥ ३८ Pा मथित्त द्रव्यानी परित्याग ४२३।, (अचित्ताण दव्याण अपिजोमरणयाए) वर-मास माह मथित द्रव्याने। परित्याग न ३२, (एगसाडियमुत्तरासगकरणेण) सापानी यतना