________________
पीयूषषपिणी-टीका ५३ भगवदर्शनार्थ फूणिकस्य गमनम् २२१
मृलम्-तए णं तस्स कूणियस्स रपणो चपाए णयरीए मझमझेणं निग्गच्छमाणस्स वहवे अत्थस्थिया कामस्थिया भोगस्थिया लाभत्थिया किबिसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चकिया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणया
टीका-'तए ण' इत्यादि । 'तए ण' तत-चम्पानगरीमध्येन निर्गमनाऽनन्तर ग्वलु ' तस्स कृणियस्स रण्णो' तस्य कृणिकस्य राज , 'चपाए णयरीए मज्झमझेण निग्गच्छमाणस्स' चम्पाया नगर्या मध्यमध्येन निर्गच्छत 'वह' वह्व अनेके 'अत्यत्थिया' अर्थाऽर्यिका =धनार्थिका , 'कामत्थिया' कामार्थिका =सुखार्थिका । 'भोगत्थिया' भोगायिका , 'लाभत्थिया' लाभार्थिका लाभाऽभिलापिण , 'किन्चिसिया' किन्चिपिका =भाण्डचेष्टाकारिण -हास्यकरा इत्यर्थ , 'कारोडिया' कापालिका , 'कारवाहिया' कारवाधिता कर एव कार, तेन बाधिता =राजकरपीटिता , 'संखिया' शाटिका गङ्खचादका 'चक्किया' चाक्रिका =चक्रधारका ‘नंगलिया'
'तए ण तस्स कूणियस्स' इत्यादि।
(तए ण) उसके बाद (तस्स कूणियस्स रण्णो) उस कूणिक राजा के (चपाए णयरीए मज्झमझेण) चपा नगरी के मध्यभाग से होकर निकलते समय (वहवे अत्यत्थिया कामस्थिया) अनेक धनार्थियों ने-सुखार्थियों ने-(भोगत्थिया लाभत्थिया) अनेक भोगार्थियों ने, अनेक लाभार्थियों ने, (फिलिसिया) भण्डचेष्टा करने वालोने-हँसामजाक करने वालों ने, (कारोडिया) अनेक कापालिको ने एक प्रकार के भिक्षुकोंने, (कारवाहिया) अनेक राजकरपाडितों ने, (सखिया) अनेक शख बजाने वालों ने (चविया) अनेक चक्रधारियोने, (नंगलिया) अनेक कृपकों ने, (मुहमगलिया) अनेक शुभागार्वाद
तए णे तस्म कृणियरस' त्याहिं
(तए ण) त्या२ ५७ (तस्स कूणियस्स रण्णो) ते एणि सना (चपाए णयरीए मज्झमझेण) य॥ नगीना मध्यभागमाथी नीती पणते (बहवे अस्थत्थिया कामत्थिया) यने धाथि सामे, मने माथिमायसुमाथिभा (भोगत्थिया लाभत्थिया) मने सोसाथियाय, मने सामा दिमागे, (किविसिया) म उये। ४२पापामारी-हामी मत ४२वावाजामामे, (कारोडिया) मने४ ४ापानिये- ना लिखुमास, (कारवाहिया) मने २२४४२पारितामे, (सखिया) भने २५ मावाणामामे, (चम्किया)