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ओपपातिकसूत्र
' मूलम्त ए णं तस्स कूणियस्स रणो भंभसारपुत्तस्स आभिसेक हस्थिरयणं दुरूढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इम अदृह मंगलया पुरओअहाणुपुव्वीए संपट्टिया, तंजहा-सोवत्थिय
टीका-गजेन्द्राधिरढो नग्लो भगवदमिमुग यियामताति तस्य पुरत प्रयानम् अएमद्गलादिपटायनीकान्त फान्त राजोचितमस्तुजात वर्णयति-तण ण' इ याहिं । 'तए ण' तत तदनतरम्-सेनापतिममानातपटगजर नममधिगेहणाऽनतर 'तस्स कणियस्स रण्गो भभसारपुत्तस्स आभिसेछ त्थिरयण दुसटस्स समाणस्स' तरय कृगि कस्य राजो भभसारपुरम्याऽऽभिप्रेक्य हस्तिग्नमधिरुद्धस्य मत 'तप्पढमयाए इमे अद्र मगलया पुरओ अहाणुपुषीए सपट्ठिया' तत्प्रथमतया इमान्याटाष्ट मगलानि पुग्तो यथानुपुच्या स्पस्थितानि, 'तजहा'-तद्यथा-' सोवत्थिय-सिरिसच्च-गदियावत्तबद्धमाणग-भदासण-कलस-मच्छ-दप्पणा'-सौरस्तिक-श्रीवस-नन्द्यावर्त -- वर्द्धमानफ-भद्रासन-कलश-मत्स्य-दर्पणा, तन-मत्स्य -चित्रपटलिखितमत्स्यरूप । एते
'तए ण तस्स कूणियस्स' इयानि ।
(तए ण) इसके बाद (भभसारपुत्तस्स) भभसार अर्थात् श्रेणिक के पुत्र (तस्स कूणियस्स रण्णी) उस कृणिक राजा के (आभिसेक हत्थिरयण) आभिपश्य हस्तिरत्न के ऊपर (दुरुढरस समाणस्स) सनार होते ही (तप्पढमयाए) सर्वप्रथम उनके (पुरओ) आग आग (इमे अट्ठ मगलया अहाणुपुवीए सपट्ठिया) ये आठ आठ मागलिक द्रव्य अनुक्रम से सप्रतिष्ठित हुा-चलने लगे, (त जहा) वे मागलिक द्रव्य ये है, (सोपत्थिय-सिविच्छगदियावत्त-वद्धमाणग-भदासण-फलस-मन्छ-दप्पणा) स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावत, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण | उनमें से स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यापत
"ता ण तस्स कृणियस्स" इत्यादि। - (ता ण) त्यार पछी (भभसारपुत्तस्स) मलसा२ अर्थात श्रेण्डिना पुत्र (तम्म कुणियम्स रणो) ते yिs Rivan (आभिसेक हत्थिरयण) मालिन्य अन्ति २८नना २ (दुरुढस्स ममाणस्स) सवार 4 rdar (तापढमयाए) भक्थी पहेस तमनी (पुरओ) मा माग (इमे अद्र मगलया अहाणुपुवीए सपट्रिया) मा 2018 २मा भागलि द्रव्य अनुभथी गाभा २ाव्या, (तजहा) ते भागनिद्रव्य माता (सोपत्धिय-मिरिवन्छ-णदियावत्त बद्धमाणग भादासण-करम गन्छ दप्पणा) १ पस्तिर, २ श्रीवत्स, 3 नन्ावत, ४ वर्थ