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पोयूपषिणो टोका र ४८ फूणिकस्य यत्रादि धारणम् किं बहुणा ! कप्परक्खए चेव अलंकिय-विभूसिए णरवई सको. रंटमल्लदामेणं छत्तणं धरिजमाणेणं उभओ चउ-चामर-वाल-वीइस तथा, य वलय भृत्या विजयते तादृशवलयधारक इत्यर्थ । यदा-यदि कश्चिदस्ति वीरस्तदाऽमौ मा निजि य मम हन्तादवहिष्कगेवेत वलयमिति स्पर्धयन् य कटक हस्ते परिधत्ते स वीरवल्य इयुच्यते । 'किं पहुणा' किम्बहुना-किमधिकेन वर्णनेन ? 'कप्पक्खए चेर अलफियविभूसिए परवई' कल्पवृक्ष इवाऽलतविभूषितो नरपति - अलकृतो मगिरनाऽऽभूपणै, विभूषितश्च महापरिधानायादिविचित्रवसनै नरपति कूगिको राजा साभाकल्पवृक्ष इव शोभते इति भार । म नरपति 'सकोस्ट-मल्ल-दामेण' सकोरण्टमान्य-दाम्ना-कोरण्टस्य माल्यानि ममानि तेपा दामानिमालास्तै महितेन 'छत्तण परिजमाणेण' उत्रेण प्रियमाणेन शोभमान , 'उभो चउ-चामर-बाल-चीटयगे' उभयत चतुश्चामरगालीजिताग , 'मंगल-जयबह-कया-लोए' मद्गल-जयगध्द-कृताऽऽगे - हम बात की घोषणा करता है कि जो भी कोई वीर हो यह मेर हाथ से इम बलय को पन-छुडाने, इस प्रकार का स्पर्धा से पीरा द्वारा जो वलय धारण किया जाता है यह भी
कलय कहा गया है। (किंबहणा) अविफ क्या कहा जाय : (अलकिय-विभूसिए) मधरनादिक के आभूपों से अलत र बहुमूल्य अनक प्रकार के मुदर मुदर वस्त्रों से पिषित (परवई) ने राजा (अप्परुखए चेव) कल्पवृक्षकी तरह गोभित होने लगे। उनके ऊपर (सफोरट-मल्ल-दामेणं उत्तेण धरिजमाणेणं) कोटि के पुप्पो की मालाओं से युक्त धरा हुआ था, पर उनके ऊपर (उमओ चउ-चामर-बाल-बीइयगे) टोना ओर से चार चामर दोर जा रहे थे, (मगल-जयसद-कया-लोए) तथा उनके देखते ही मनुष्यों ने 'मगल हो, बय કરે છે તે એ વાતની ઘોષણા કરે છે કે જે કોઈ પણ વાર હોય તે મારી પાસેથી હાથમાથી આ વલયને ખેચીને છોડાવી જાય આ પ્રકારની પધીથી વીરે દ્વારા જે વલય ધારણ કરવામાં આવે છે તેને વીરવલય
पामा मा छे (किं वहणा) वधारे शु ४३ होय। (अलकियपिभूसिए ) भरिलायुत मामूषणोधी मत भर ममूल्य (ust हिमती ) भने प्रहारना सुदर पोथी विभूषित (गरवई ) Pion ( कप्परस्सए चेर) पक्षनी ? शीलपा साज्या तमना ५२ (सफोरट मल्ल दामेणं छत्तेण धरिन्जमाणेण) दाना यानी भासा 43 यु छ घा२५ ४२येत
तु तभन भन ५२ (उमओ चउ-चामर-यालयीइयगे) भन्न मागुमे भगी या शाम 5 Rधा ता (मंगल-जयसह-कया लोए) तथा तभने